रायपुर

रायपुर : न्यायालय, जज इन सबसे बड़ी है राजधानी की पुलिस??…जाने क्या है पूरा मामला…

◆ न्याय प्रिय उपमुख्यमंत्री के साथ-साथ गृह मंत्री विजय शर्मा को इस गंभीर मामले को स्वतः संज्ञान लेते हुए कड़ी कार्यवाही किये जाने की आवश्यकता है...

रायपुर। समाज कल्याण विभाग में एक से बढ़कर एक कारनामे उजागर होते आ रहे हैं। इस विभाग का आलम यह कि; कहने को तो यह समाज कल्याण विभाग है, लेकिन समाज का कल्याण तो कहीं दिखाई नहीं पड़ता लेकिन स्व कल्याण कहीं ज्यादा होते नजर आता है। इस विभाग में अपर संचालक के पद पर पदस्थ, यूपी मूल का एक शातिर बंदा; पंकज कुमार वर्मा पिता हरिमोहन वर्मा ने साल 1998 में समाज कल्याण विभाग में बतौर फिजियोथेरेपिस्ट नौकरी की शुरुआत करता है।

सूत्रों से प्राप्त हुआ कि शैक्षणिक प्रमाण पत्र फर्जी है।बता दें कि समाज कल्याण विभाग में अपर संचालक के पद पर शोभायमान पंकज वर्मा इसी विभाग में एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत एक हजार करोड़ के घोटाले में शामिल 6 आईएएस और 12 घोटालेबाज अधिकारीयों की गैंग में भी शामिल रहा है। तब इसने जिस आधार पर नौकरी हासिल करी मामला फाइलों में दबी धूल जमते कहीं किसी कोने में पड़ी हुई थी। जब मामला परत दर परत खुलते गया; तब सूचना का अधिकार के तहत एक आरटीआई कार्यकर्ता रवि पेदुरवार को इस बात से सूत्रों ने अवगत कराया कि इसका शैक्षणिक प्रमाण पत्र फर्जी है।

सैंया भये कोतवाल : आरटीआई से प्राप्त दस्तावेज के आधार पर आवेदक रवि पेदुरवार ने थाना पुरानी बस्ती और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के समक्ष शातिर पंकज वर्मा के खिलाफ मामला दर्ज किए जाने का आवेदन दिया, जिसे थाना प्रभारी ने संभवत: रद्दी की टोकरी में डालते हुए साबित कर दिया कि सैंया भए कोतवाल।

कार्यवाही न होने पर याचिका दायर : मामले की गंभीरता पर संज्ञान नहीं लिए जाने से आवेदक ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत न्यायालय में एक आवेदन प्रस्तुत किया। जिस पर संज्ञान लेते हुए माननीय समीर कुजूर, न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी रायपुर छ.ग. ने पंकज वर्मा के द्वारा नौकरी के दौरान प्रस्तुत शैक्षणिक प्रमाण पत्र को प्रथम दृष्टया जाली (फर्जी) प्रतीत होना पाया और समाज कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक पंकज कुमार वर्मा पिता हरिमोहन वर्मा के खिलाफ 24 जनवरी 2024 को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 468, 471 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना हेतु थाना प्रभारी पुरानी बस्ती रायपुर को निर्देशित किया गया।

जांच में हुआ खुलासा : वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रायपुर के पत्र क्रमांक व.पू.अ./स्टेनो-3 शि.पू.मु. /93/2020 दिनांक 27/10/2020 द्वारा इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड रूरल टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद उत्तर प्रदेश के पत्र IERT / EXAM/15569 दिनांक 19/07/2018 के आधार पर फिजियोथेरेपी (साढ़े तीन वर्षीय) डिप्लोमा पाठ्यक्रम में पंकज कुमार वर्मा के अंतिम वर्ष की अंकसूची में कूटरचना होना पाए जाने, का उल्लेख करते हुए पुरानी बस्ती पुलिस को जांच का आदेश दिया गया था। बावजूद इसके पुरानी बस्ती थाना के तात्कालिक थाना प्रभारी सुधांशु बघेल एवं मातहतों ने दस्तावेजों की जाँच के बहाने एक माह बीत जाने के बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं कर मामले में हीला हवाला करते रहे। इस दरम्यिान थाना पुरानी बस्ती के अतिकर्तव्यनिष्ठ थाना प्रभारी महोदय का तबादला भी हो जाता है और नवीन पदस्थ प्रभारी श्रीमान योगेश कश्यप के कार्यभार सम्हालते ही लगा कि, मामले में रंग आएगा। मगर ढांक के तीन पांत वाली कहावत यहाँ भी चरितार्थ हुई।

थाना प्रभारी योगेश कश्यप की कार्यप्रणाली से तो संदेह की सुई ने मन:मस्तिष्क में इतनी गहरी चुभन का अहसास करा दिया कि मानों इस महोदय का तबादला ही इस उद्देश्य से किया गया हो कि मामले को तूल ना दिया जाकर येन-केन-प्रकारेण निपटा देने का है …और श्रीमान योगेश कश्यप ने इसी को ब्रह्मवाक्य समझकर अभियुक्त पंकज वर्मा को अभयदान देते हुए पाक साफ होने का भरसक प्रयास भी किया।

अदम गोंडवी साहब की उक्त पंक्ति इसी तरह के मामले में फीट बैठती है।

जितने हरामखोर थे क़ुर्ब-ओ-जवार में,
परधान बनके आ गए अगली क़तार में..!!
दीवार फाँदने में यूँ जिनका रिकॉर्ड था,
वे चौधरी बने हैं उमर के उतार में…!!

मामले में आवेदक जब एक पत्रकार हो और उसके आवेदन को धत्ता बताकर रद्दी की टोकरी में डाल न्यायालय के आदेश को भी दरकिनार कर एक भ्रष्ट अधिकारी की पैरवी खुद पुलिस करने लगे तब समझ जाना चाहिए कि आम आदमी को ये कानून के रखवाले कितना तवज्जों देते होंगे, अंदाजा लगाया जा सकता है।

मामला पहुचा उच्च न्यायालय : मामले में हीला हवाला होते देख आवेदक ने उच्च न्यायालय की शरण में जा पहुँचा। न्यायालय के आदेश दिनांक 24.01.2024 के पश्चात् जिस तत्परता से पंकज वर्मा को पुलिस के गोपनीय दस्तावेज प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने एवं विवेचना उपरांत अभियोग पत्र प्रस्तुत होने के पूर्व उपलब्ध कराए गए, उन्हीं दस्तावेजों को लेकर याचिकाकर्ता पंकज वर्मा भी हाईकोर्ट की शरण में जा पहुँचा। जो दस्तावेज प्रार्थी को प्राप्त नहीं हो सकते तथा अभियुक्त को अभियोग पत्र प्रस्तुत होने के पूर्व प्राप्त नहीं हो सकते वे दस्तावेज बेहद ही आसानी से पंकज वर्मा द्वारा प्रस्तुत याचिका में पाए गए ! जिसके सहारे याचिकाकर्ता पंकज वर्मा के वकील ने न्यायालय में ही बड़े जोर- शोर से अपनी आवाज बुलंद करनी चाही लेकिन जैसे ही प्रार्थी की ओर से पैरवीकर्ता अधिवक्ता ने एक के बाद एक प्रश्न दागने शुरू किए तो याचिकाकर्ता स्तब्ध रह गए।

यह कमाल होता है जब पुलिस और अपराधी की बेहतरीन सांठ गांठ होती है… हाईकोर्ट में दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद जब यह जाना कि, न्यायालय के आदेश दिनाक 24.01.2024 का पालन अब तक नहीं किया गया तो माननीय न्यायालय ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए अभियोजन से कारण जानना चाहा और रायपुर पुलिस अधीक्षक को झड़प लगाते हुए शपथ पत्र सहित उपस्थित होने आदेशित किया, जिससे आनन-फानन में पुलिस प्रशासन ने महिनों से लंबित न्यायालयीन आदेश पर प्रथम सूचना रिपोर्ट क्रमांक 199/2024 दर्ज की। देखा जाए तो आनन-फानन में की गई एफआईआर भी आधी अधूरी निकली। अंदेशा जिस ओर था, आखिरकार मामले का रूख उसी तरफ खींचा गया। जैसा कि लिखा गया है।

भ्रष्टासुर पंकज वर्मा को उसके आरोपों से संतोष जनक निजात दिलाने की ओर पुरानी बस्ती थाना के मातहतों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा और प्रकरण का खात्मा खारिज करने से भी गुरेज नहीं किया।

फिलहाल समाज कल्याण की दलदल से उपजा यह पंकज, अपर संचालक समाज कल्याण शासन और समाज को चिढ़ता भ्रष्टतंत्र की शै पर उपकृत किया जाकर इठलाता, इतराता महज माह भर के अंदर योग आयोग और फिर उसके बाद छत्तीसगढ़ वित्त एवं विकास निगम में प्रबंध संचालक जैसे महत्वपूर्ण पद को सुशोभित करता मंद मंद मुस्कुराता न्यायपालिका के आदेश को चुनौती दे रहा है।

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