रायपुर : आबकारी, खनिज, ऊर्जा और जनसंपर्क विभाग में भ्रष्टाचार का महाखेल : साजिश के घेरे में साय सरकार, क्या सीबीआई जांच खोलेगी सारे राज?…
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रायपुर। छत्तीसगढ़ में बीज एवं कृषि विकास निगम (सीजीएमएससी) में करोड़ों रुपये के महाघोटाले का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। सरकार की पारदर्शिता और ईमानदारी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आरोप है कि इस घोटाले के मुख्य आरोपियों को बचाने के लिए सरकार के ही कुछ शीर्ष नौकरशाह पर्दे के पीछे से खेल कर रहे हैं। खासकर एक रसूखदार आईएएस अधिकारी पर उंगलियां उठ रही हैं, जो मुख्यमंत्री हाउस के बेहद करीबी माने जाते हैं। अब सवाल यह है कि क्या साय सरकार इस अधिकारी पर कोई सख्त कार्रवाई करेगी, या फिर प्रशासनिक रसूख और सत्ता की साठगांठ से मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
ईमानदार मुख्यमंत्री की छवि पर उठ रहे सवाल : प्रदेश के मुख्यमंत्री साय की गिनती भाजपा के लोकप्रिय और ईमानदार नेताओं में होती है। उनकी छवि एक कर्मठ और स्वच्छ नेता की रही है, लेकिन हाल ही में उनके ही अधीनस्थ कुछ अधिकारियों ने उनकी साख को नुकसान पहुंचाने का काम किया है। सत्ता के गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि मुख्यमंत्री की सज्जनता और ईमानदारी का फायदा कुछ ‘परजीवी’ नौकरशाह उठा रहे हैं, जो पर्दे के पीछे से शासन की नीतियों को प्रभावित कर रहे हैं और घोटालों पर पर्दा डाल रहे हैं।
पिछले कुछ महीनों में कई युवा और काबिल आईएएस अधिकारियों ने अपनी प्रशासनिक क्षमता का शानदार परिचय दिया है। इनमें कुछ महिला अधिकारी भी शामिल हैं, जिनकी कार्यशैली की प्रशंसा की गई थी। लेकिन, अब इन्हीं कर्मठ अधिकारियों को दरकिनार कर सरकार में कुछ भ्रष्ट और संदिग्ध अधिकारियों को संरक्षण देने का आरोप लग रहा है। यही वजह है कि साय सरकार की छवि पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
कौन है ‘घर का भेदी’? सीजीएमएससी महाघोटाले की जांच को दिशा से भटकाने और आरोपियों को बचाने की कोशिश करने वाले नौकरशाहों पर अब सरकार की नजर टेढ़ी हो गई है। चर्चा है कि कोरबा और बिलासपुर जिले के कलेक्टर रह चुके एक आईएएस अधिकारी को मुख्यमंत्री साय ने अपने पुराने संबंधों के आधार पर बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी थीं। लेकिन, अब धीरे-धीरे मुख्यमंत्री को यह एहसास हो रहा है कि जिसे वह हीरा समझ रहे थे, वह महज पत्थर निकला।
सूत्रों का कहना है कि यह अधिकारी सत्ता की आड़ में अपने निजी स्वार्थों को साधने में जुटा हुआ है और विभिन्न विभागों में अपनी मनमानी चला रहा है। इसके चलते प्रदेश के प्रमुख विभाग आबकारी, खनिज, ऊर्जा, और जनसंपर्क विभाग भ्रष्टाचार के दलदल में फंसते जा रहे हैं।
सरकार के खिलाफ आम जनता में यह धारणा बन रही है कि साय सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था सही दिशा में नहीं जा रही है। कई लोग तो यह तक कहने लगे हैं कि इससे अच्छी तो कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार थी। भाजपा के सत्ता में आने के बाद जनता को पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद थी, लेकिन अब भाजपा शासन में भी सत्ता का “कांग्रेसीकरण” होता दिख रहा है।
जनसंपर्क विभाग में खेल, राष्ट्रवादी पत्रकारों की अनदेखी : भ्रष्टाचार की इस गहरी साजिश में जनसंपर्क विभाग की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। आरोप है कि यहां एक अनुभवहीन और नौसिखिए अधिकारी को बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी गई है, जिसने राज्य की मीडिया नीति को पूरी तरह से बदल दिया है।
खबरों के अनुसार, राष्ट्रवादी समाचार पत्रों और वर्षों से जनहित में पत्रकारिता करने वाले अनुभवी पत्रकारों को सरकार ने दरकिनार कर दिया है। वहीं, कुछ बाहरी अखबारों, पत्रिकाओं और न्यूज चैनलों को मनमाने ढंग से करोड़ों रुपये के विज्ञापन दिए गए हैं। इससे सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या साय सरकार भी वही गलतियां दोहरा रही है, जो पिछली सरकारों में होती रही हैं?
सरकार में बैठे कुछ अफसर अपनी तानाशाही मानसिकता के चलते योग्य और कर्मठ अधिकारियों को काम करने नहीं दे रहे हैं। वहीं, भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ अधिकारियों को संरक्षण देकर उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया जा रहा है।
अब सवाल उठता है कि क्या सीजीएमएससी और बीज एवं कृषि विकास निगम में हुए करोड़ों रुपये के घोटाले की निष्पक्ष जांच होगी? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर इस घोटाले की जांच सीबीआई (CBI) या प्रवर्तन निदेशालय (ED) को सौंपी जाती है, तो कई बड़े नामों का पर्दाफाश हो सकता है।
प्रदेश की जनता को अब उम्मीद है कि सरकार पारदर्शिता बनाए रखते हुए इस मामले में कड़ी कार्रवाई करेगी। यदि दोषियों को सजा नहीं मिली, तो इसका सीधा असर सरकार की छवि और आगामी चुनावों पर पड़ सकता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि मुख्यमंत्री साय भ्रष्टाचार के इन मामलों में कितनी सख्ती दिखाते हैं और क्या वह अपने ही खेमे में छिपे ‘घर के भेदी’ से पार पा सकते हैं?