रायगढ़

रायगढ़ : प्रदेश का हर घोटाला बजरमुडा मुवावजा घोटाले के सामने छोटा; दोषियों पर कार्रवाई की अनुशंसा…

रायगढ़। जिले के तमनार तहसील स्थित सीएसपीडीसीएल को आवंटित कोल ब्लॉक गारे पेलमा सेक्टर 3 के गांव बजरमुड़ा में भूअर्जन में जिस तरह का घोटाला किया गया है, उससे राजस्व विभाग की विश्वसनीयता खतरे में है। इतनी ज्यादा गड़बड़ी अब तक किसी भी भूअर्जन में नहीं की गई थी। ढाई महीने से जिस जांच रिपोर्ट को प्रशासन गोपनीय बताकर छिपा रहा है, वह मीडिया के हाथ लग गया है।

जांच अधिकारियों ने मुआवजा पत्रक को दोषपूर्ण बताते हुए संबंधित अधिकारी व कर्मचारी के विरुद्ध विभागीय जांच व अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की है। साथ ही दोबारा गणना करने की जरूरत बताई है। तमनार के गांव बजरमुड़ा में जिस स्तर का घोटाला किया गया, वह अब तक का सबसे बड़ा है ऐसा पूरे छत्तीसगढ़ में नहीं हुआ है।

राजस्व विभाग के जिन अफसरों और कर्मचारियों ने इसे अंजाम दिया है, वे अब भी पूरी व्यवस्था पर अट्टहास कर रहे हैं। बजरमुड़ा में असिंचित भूमि को सिंचित बताकर, पेड़ों की संख्या ज्यादा दिखाकर, टिन शेड को पक्का निर्माण बताकर, बरामदे, कुएं आदि का मनमानी मुआवजा आकलन किया गया। गणना के समय ही जिस भूमि पर 20 लाख का मुआवजा मिलता, उसमें दो करोड़ का मुआवजा बना दिया गया। गणना के पूर्व परिसंपत्तियों के आकलन में जमकर गड़बड़ी की गई। रायगढ़ निवासी दुर्गेश शर्मा की शिकायत पर राज्य सरकार ने जांच टीम बनाई थी व आईएएस रमेश शर्मा की अध्यक्षता में जांच की गई।

शासन को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में पूरे घोटाले की कलई खोल दी गई है। जिस तरह की अनियमितता को राजस्व विभाग के अधिकारियों ने अंजाम दिया है, उसने पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाया है। मिलूपारा, करवाही, खम्हरिया, ढोलनारा और बजरमुड़ा में 449.166 हे. पर लीज स्वीकृत की गई। इसमें लीज क्षेत्र के अंतर्गत 362.719 हे. और बाहर 38.623 हे. भूमि पर सरफेस राइट के तहत भूअर्जन किया गया। प्रभावितों को क्षतिपूर्ति राशि के आकलन के लिए एसडीएम घरघोड़ा अशोक मार्बल को प्रकरण दिया गया। जुलाई 2020 को प्रारंभिक सूचना प्रकाशित की गई। ईश्तहार प्रकाशन के बाद भूमिस्वामियों की आपत्ति आई। 22 जनवरी 2021 को अवार्ड पारित किया गया। इसमें केवल बजरमुड़ा के 170 हे. भूमि पर 478.68 करोड़ का मुआवजा पारित किया गया।

सीएसपीडीसीएल ने अवार्ड राशि से क्षुब्ध होकर कलेक्टर से अपील की जिसके बाद ब्याज को 32 माह से घटाकर 6 माह का किया गया। कंपनी को आंशिक राहत मिली जिसमें मुआवजा 415.69 करोड़ हो गया। एक गांव में इतना ज्यादा मुआवजा आज तक कभी नहीं बांटा गया। परिसंपत्तियों के आकलन भारी भ्रष्टाचार किया गया जिसमें तत्कालीन एसडीएम समेत कई पटवारी, आरआई, तहसीलदार, लिपिक, सरपंच, सचिव, दलाल शामिल हैं। जांच के लिए 13 टीमें बनाई गई थी जिन्होंने शिकायत के बिंदुओं पर विस्तृत मौका जांच किया। 6 दिसंबर 2023 से 8 दिसंबर 2023 तक और 8-9 फरवरी 2024 को जांच की गई। केलो प्रवाह को इसकी रिपोर्ट मिली है, जिसमें बेहिसाब भ्रष्टाचार की कहानी है।

एक ही जमीन पर फसल और पेड़ों का मुआवजा :
रिपोर्ट के पहले ही बिंदु में अश्विन पिता लक्ष्मीप्रसाद वगैरह को मिले 55 करोड़ के मुआवजे में की गई गड़बड़ी बताई गई है। 19 खसरों के करीब 15 हे. भूमि पर मुआवजे की गणना की गई है। खनं 12/1 रकबा 2.905 हे. में आम पौधे 2671, महुआ पेड़ 12, नीम पेड़ पांच पाए गए। जबकि 300 आम पौधे को वृक्ष की दर से 6000 रुपए की दर से 3.70 करोड़ रुपए दिए गए हैं। पौधों को पेड़ दिखा दिया गया है। जबकि आम पौधे की गणना 38 रुपए की दर से की गई है। मौके पर आम के पेड़ थे ही नहीं। मौैके पर एक नलकूप पाया गया जिसका उपयोग घरेलू कार्य के लिए हो रहा था। कच्चा कुआं भी नहीं मिला और मकान भी निर्मित नहीं पाया गया। इसी 2.905 हे. भूमि को सिंचित दर से 2.64 करोड़ रुपए का मुआवजा अलग से दिया गया है जबकि इस पर पेड़ों का मुआवजा बनाया गया है। एक ही भूमि पर फसल और वृक्षों का मुआवजा दिया गया।

200 आम के पौधों को बताया 5000 वृक्ष का : अश्विन पिता लक्ष्मीप्रसाद के सभी खसरों में झूठी गणना करके कई सौ गुना मुआवजा बना दिया गया। खनं 60/1 रकबा 3.505 हे. की मौका जांच में वहां आम पौधा 200, महुआ पेड़ 22, साल वृक्ष 3, इमली 6 और अन्य 30 पेड़ पाए गए। जबकि मुआवजा पत्रक में आम के वृक्ष 5000 दिखाए गए हैं जिनका 6000 रुपए की दर से 6.18 करोड़ रुपए मुआवजा दिया गया। यहां एप्पल बेर का कोई पेड़ ही नहीं मिला जबकि ऐसे 2000 पेड़ों का 500 रुपए की दर से 20.60 लाख रुपए बांट दिए गए। मुनगा, खम्हार और पीपल के पेड़ थे ही नहीं, लेकिन गणना करने वालों ने पीपल के पांच पेड़ 4585 रुपए की दर से मुआवजा दिया। वहीं खम्हार के 35 पेड़ों का 2794 रुपए की दर से 2.01 लाख रुपए, मुनगा के 20 पेड़ों का 500 रुपए की दर से 20,600 रुपए दिए गए दिए गए हैं। मतलब जिन आम के पौधों को 38 रुपए की दर से गणना होनी थी, उनकी संख्या 5000 दिखाकर पेड़ के रूप में मुआवजा दिया गया।

23 आम के पौधे मिले लेकिन आरआई-पटवारी ने बताए 3200 पेड़ : इसी भूमि स्वामी के खनं 60/2 रकबा 1.821 हे. में आम पौधा 23, महुआ पेड़ 8 पाए गए। एप्पल बेर था ही नहीं। लेकिन मुआवजा पत्रक में आम के 3200 वृक्ष दिखाया गया जिनका 6000 रुपए की दर से 3.95 करोड़ रुपए दिया गया। एप्पल बेर के 1000 पेड़ों का 500 रुपए की दर से 10.30 लाख दे दिया गया जो थे ही नहीं। खसरा नंबर 82/2 रकबा 1.514 हे. में तो एक भी पेड़ नहीं मिला लेकिन यहां 300 आम पौधे और 1200 आम पेड़ों का डेढ़ करोड़ रुपए भुगतान किया गया।

सिंचाई का साधन नहीं लेकिन भूमि सिंचित : असिंचित को सिंचित बताकर जो खेल खेला गया, उसके भी कई मामले उजागर हुए हैं। अश्विन की भूमि खनं 89/2 रकबा 0.305 हे. में सिंचाई का कोई साधन ही नहीं था जबकि भूमि को सिंचित बताकर 27.72 लाख का भुगतान किया गया। खनं 90/2 में भी सिंचाई का साधन नहीं होने पर भी सिंचित भूमि का मुआवजा दिया गया। खनं 106 रकबा 0.866 में केवल दो महुआ के पेड़ मिले। मुआवजा पत्रक में 1780 आम पौधा का 2.20 करोड़ मुआवजा दिया गया। इसी तरह खनं 125 में भी केवल नीम के दस पेड़ पाए गए। मुआवजा पत्रक में आम पौधा 377, आम पेड़ 423 के 52.28 लाख रुपए दिए गए। आम के पौधे के लिए 38 रुपए की दर है जबकि पेड़ के लिए 6000 रुपए तय किए गए। कम पौधों को हजारों पेड़ बताकर करोड़ों में मुआवजा लिया गया।

प्रदेश का हर घोटाला लगेगा छोटा : बजरमुड़ा कांड ने एनटीपीसी लारा घोटाले को भी बौना साबित कर दिया है। अब से रायगढ़ में बजरमुड़ा घोटाले को भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाएगा। शासन ने कलेक्टर रायगढ़ को घोटाले के जिम्मेदारों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई करने का आदेश दिया है।

जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि मुआवजा पत्रक त्रुटिपूर्ण है। जानबूझकर मूल्यांकन व निरीक्षण टीम के अधिकारी व कर्मचारी ने व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से मुआवजा पत्रक तैयार किया गया है। यह आर्थिक अनियमितता की श्रेणी में आता है।

जांच समिति ने भूअर्जन प्रकरण के निराकरण में शामिल सभी अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की अनुशंसा की है। इस घोटाले की वजह से छग सरकार को करीब 300 करोड़ का नुकसान हुआ है। इसके जिम्मेदार अफसरों के विरुद्ध एफआईआर, आय से अधिक संपत्ति, मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामले भी बनते हैं।

साभार : केलो प्रवाह

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