रायगढ़

रायगढ़ पुलिस का नया न्याय मॉडल : मार खाओ, आवेदन दो, थाने जाओ – फिर बन जाओ आरोपी…!

रायगढ़। छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर नहीं, अब रायगढ़ बनने जा रहा है – लेकिन यहां ‘न्याय’ का मतलब उल्टा है। यहां पीड़ित को सजा मिलती है और अपराधी को सलाम। नया पुलिसिया फार्मूला है –

“जो बोलेगा, वो फंसेगा…!”

शहर की सड़क पर पीट-पीट कर गला दबा दिया गया,
लेकिन पुलिस ने पूछा – “दिखा क्या?”

जगमोहन साहू की गलती सिर्फ इतनी थी कि वो लोकतंत्र में जीने की कोशिश कर रहा था। लेकिन लोकतंत्र रायगढ़ में अब थानेदारों के बेल्ट से चलता है।

जब पीड़ित परिवार ने थानेदार हर्षवर्धन सिंह से इंसाफ मांगा, तो उन्होंने “संविधान” की जगह “धौंसविधान” का पाठ पढ़ाया:

“केस वापस लेलो…?”

वाह जनाब! शायद थाने में अब गवाहों की नहीं, गुंडों की जरूरत होती है

FIR की जगह आई ‘खामोशी’, जैसे थाना नहीं, कोई ‘सत्ता सेवा केंद्र’ हो : 20 दिन तक आवेदन, अनुनय, प्रार्थना और थाने के चक्कर लेकिन हर बार जवाब एक जैसा-

“यश सिन्हा और उसका बाप , ताऊ सब बड़े लोग हैं, तुमसे न हो पायेगा…!”

वाह ! लोकतंत्र की यह ‘लंबाई मापने’ का नया तरीका है जितना बड़ा रसूख, उतनी छोटी कानूनी कार्रवाई।…

शायद अगली बार पुलिस एक ‘VIP स्केल’ ले आए, जिससे तय हो कि किस पर FIR होनी चाहिए, किस पर नहीं।

न्याय का अंत नहीं, परिहास की शुरुआत :
20 दिन बाद, न्याय नहीं मिला
बल्कि पीड़ित जगमोहन साहू पर ही छेड़खानी का केस दर्ज कर दिया गया!

कहते हैं ना “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे”, लेकिन रायगढ़ में है “उल्टा पीड़ित को आरोपी बना डालो!”

अब सवाल उठता है क्या यह शहर पुलिस अफसरों का चुटकुलेबाज़ क्लब बन चुका है? जहां इंसाफ नहीं, व्यंग्य, उपहास और पीड़ितों की बेइज्जती पर तालियां बजती हैं।

गृह मंत्री तक भी मामला गया, लेकिन…
उनकी ‘गृह-शांति’ भंग न हो जाए इसलिए चुप्पी!

यह वही राज्य है जहां मंत्रियों की कुर्सी पीड़ितों की चीखों से नहीं हिलती, बल्कि राजनीतिक रिश्तेदारों की नाराज़गी से कांप जाती है।

अब आम नागरिकों को सुझाव :

  • पीटा जाएं तो आवेदन न दें वरना आप ही आरोपी बन जाएंगे।
  • थाना जाएं तो फूल माला लेकर जाएं क्योंकि वहां अपराधी नहीं, ‘भगवान’ रहते हैं।
  • और अगर गलती से भी न्याय की बात करें तो अपने लिए बेल बॉन्ड तैयार रखें।

और थाने के बाहर नया बोर्ड लगाने का सुझाव –

“यहां न्याय मांगना मना है – धन्यवाद।”

यह खबर न्याय की उम्मीद में नहीं,
बल्कि प्रशासन के मुंह पर करारी ताली है…
जो शायद उन्हें जगा न पाए,
तो कम से कम उनकी नींद को और ‘शर्मनाक’ बना दे।

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