युक्तियुक्तकरण या शिक्षकों के अधिकारों की कटौती? लैलूंगा में गहराया विवाद, शासन की योजना सवालों के घेरे में…

रायगढ़। जिले के लैलूंगा में शिक्षा विभाग की बहुप्रचारित युक्तियुक्तकरण योजना लैलूंगा विकासखंड में अब विवाद और अव्यवस्था की मिसाल बनती जा रही है। इस योजना के नाम पर शिक्षकों के अधिकारों की अनदेखी और विद्यालयों की उपेक्षा ने इसे पारदर्शिता की बजाय पक्षपात की परिभाषा बना दिया है।
एकल शिक्षक शालाएं योजना से बाहर – शिक्षा या साज़िश? : सूत्रों के अनुसार, विकासखंड की कई एकल शिक्षक शालाएं — जैसे प्रा. शा. सिहारपारा चोरगा, केंदाटिकरा, सलिहापारा कटकलिया — को योजना की सूची से ही बाहर कर दिया गया। इन शालाओं में वर्षों से केवल एक शिक्षक पूरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, बावजूद इसके, इनकी उपेक्षा न केवल शैक्षणिक व्यवस्था के साथ मज़ाक है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की भी पोल खोलती है।
शिक्षकों का आक्रोश – “सुनवाई का अधिकार भी छीन लिया गया” : स्थानीय शिक्षकों का आरोप है कि न तो उन्हें दावा-आपत्ति दर्ज करने का अवसर दिया गया और न ही प्रक्रिया की कोई औपचारिक सूचना दी गई। शासन ने सुनवाई का अधिकार भी उनसे छीन लिया, जिससे यह पूरी कवायद एकतरफा और मनमानी प्रतीत होती है।
व्हाट्सएप से शासन चलाना – क्या यही है “डिजिटल इंडिया”? : और सबसे चौंकाने वाली बात — काउंसलिंग की सूचना केवल व्हाट्सएप के ज़रिए दी गई! शासन की इतनी गंभीर योजना में सूचना देने का यह लापरवाह तरीका न केवल गैरकानूनी है, बल्कि शिक्षकों के संवैधानिक अधिकारों की सीधी अनदेखी है। कई शिक्षक समय पर सूचना न मिलने से काउंसलिंग से वंचित रह गए।
शिक्षकों की चेतावनी “पारदर्शिता नहीं तो आंदोलन तय” : लैलूंगा क्षेत्र के शिक्षक इस प्रक्रिया से बेहद क्षुब्ध हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि यदि इस प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच नहीं हुई और दोबारा न्यायसंगत तरीके से समायोजन नहीं हुआ, तो वे लोकतांत्रिक आंदोलन की राह पकड़ेंगे। यह मामला अब केवल समायोजन का नहीं, शिक्षकों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा का है।
शिक्षकों की मांगें :
- समस्त एकल शिक्षक शालाओं को योजना में शामिल किया जाए
- दावा-आपत्ति के लिए निर्धारित और सार्वजनिक समय सीमा तय हो
- सूचना केवल अधिकृत शासकीय माध्यमों से दी जाए
- समायोजन प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच हो
युक्तियुक्तकरण योजना लैलूंगा में शिक्षकों के लिए युक्तियुक्त की जगह अन्याययुक्त बन गई है। यदि समय रहते व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ, तो इसका असर सीधे-सीधे विद्यालयों की गुणवत्ता और बच्चों के भविष्य पर पड़ेगा। शासन को चाहिए कि वह आंख मूंदकर आदेश थोपने की बजाय जमीनी हकीकत को सुने और सुधार करे।