मुरा : रेत माफिया राज में दम तोड़ती मांड नदी, शासन-प्रशासन बना अपराधी का साझेदार!…

रायगढ़। जिले के खरसिया विकासखंड का मुरा गांव इन दिनों रेत माफियाओं का अखाड़ा बन चुका है। यहां मांड नदी के किनारे हर सुबह ट्रैक्टर-ट्रॉलियों की कतारें लगती हैं जैसे कोई खुला आमंत्रण हो: “आओ, लूट लो नदी को!” जो कुछ भी हो रहा है, वह न छुपा है, न रुक रहा है फिर भी शासन-प्रशासन की आंखों पर पर्दा पड़ा है, या शायद जेब में नफे का कागज।
ग्राम पंचायत मुरा के पास रेत खनन की कोई वैध अनुमति नहीं है, फिर भी मांड नदी का सीना रोज़ चीर दिया जा रहा है। सवाल यह है कि यह सब किसके संरक्षण में चल रहा है? ट्रैक्टरों की आवाज़ें साफ़ कह रही हैं कि कोई न कोई ऊपर तक पहुंच वाला “ठेकेदार” इस काले कारोबार का सरपरस्त है, और प्रशासन उसकी जेब में कैद है।
इस खुली लूट से मांड नदी कराह रही है। उसका प्रवाह घायल है, उसकी आत्मा लहूलुहान है। अवैध खनन ने न केवल नदी के प्राकृतिक स्वरूप को बिगाड़ा है, बल्कि भूगर्भीय जलस्तर गिर रहा है, खेतों की उर्वरता खत्म हो रही है और जैवविविधता पर सीधा संकट मंडरा रहा है। यह सिर्फ रेत की चोरी नहीं, यह आने वाली पीढ़ियों के अधिकारों की लाश पर मुनाफा कमाने का धंधा है।
जितनी मात्रा में रेत मांड नदी से निकाली जा रही है, उससे प्रतिदिन लाखों का राजस्व नुकसान हो रहा है। ये नुकसान सिर्फ आर्थिक नहीं है यह प्रशासनिक निष्ठा की कब्रगाह है। पंचायत सचिव, खनिज अधिकारी, थाना प्रभारी – हर जिम्मेदार पद एक सवाल के घेरे में है। जब शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती, तो संदेह भ्रष्टाचार की ओर ही जाता है।
गांव के लोगों का गुस्सा अब उबाल पर है। ग्रामीणों ने बताया कि यह धंधा वर्षों से चल रहा है, लेकिन हाल के महीनों में यह और भी बेलगाम और खतरनाक हो गया है। माफिया अब सिर्फ रेत नहीं निकालते, वो अब आवाज़ उठाने वालों को डराने भी लगे हैं। लेकिन अब गांव झुकने को नहीं तैयार वे कह रहे हैं, “अब या तो प्रशासन जागेगा, या आंदोलन उभरेगा।”
जनता की मांग है कि मांड नदी से अवैध खनन को तुरंत रोका जाए, दोषियों की गिरफ्तारी हो, और पूरे मामले की निष्पक्ष न्यायिक जांच कर पंचायत की भूमिका का विश्लेषण किया जाए। यदि प्रशासन इस बार भी चुप रहा, तो यह चुप्पी उसकी भागीदारी का दस्तावेज बन जाएगी।
अब मांड नदी सिर्फ एक नदी नहीं रही वह एक सवाल बन गई है। सवाल न्याय का, जवाबदेही का, और सरकारी साख का। मांड बचेगी, तभी खेत बचेंगे, पानी बचेगा, और गांव का भविष्य बचेगा। लेकिन अगर सरकार ने फिर से आंखें मूंद लीं, तो यह जनता की आंखें खोल देगा और जब जनता जागती है, तो सत्ता के महलों में दरारें पड़ती हैं।
“मांड की लहरें इस बार साक्षी बनेंगी – या तो व्यवस्था डूबेगी, या न्याय जागेगा!”