रायगढ़

फ्लाई ऐश के नाम पर मौत का कारोबार! रायगढ़ बना राख का शहर, जनता पी रही जहर- शासन बना गूंगा तमाशबीन…

रायगढ़। उद्योगपतियों के मुनाफे की चिमनियों से निकलती राख अब इस शहर की नसों में ज़हर बनकर घुल रही है। स्टील और पावर के नाम पर चमकता रायगढ़ अब एक “फ्लाई ऐश डंपयार्ड” बन चुका है, जहां जीवन सस्ता है और मुनाफा महंगा। उद्योगों से निकलती सिलिकी राख, काले धुएं की मोटी परत, केलो नदी का जहरीला पानी और खेतों में उड़ती मौत… यही है आज का रायगढ़।

जहां कभी हवा में हरियाली की महक होती थी, वहां अब हर सांस के साथ ज़हर घुल चुका है, और सबसे शर्मनाक है कि यह सब एक सुनियोजित ‘फ्लाई ऐश सिंडिकेट’ की मिलीभगत से चल रहा है, जिसमें ट्रांसपोर्टर, अधिकारी, उद्योग और नेता तक शामिल हैं।

सिंडिकेट का खेल: फ्लाई ऐश डस्ट = करोड़ों का खुला घोटाला : एक विधि वक्ता संघ सहित दर्जनों संगठनों द्वारा सत्र न्यायाधीश, कलेक्टर और एसपी को दिए गए ज्ञापन ने इस ‘फ्लाई ऐश माफिया’ की परतें उधेड़ दी हैं। शिकायत स्पष्ट कहती है – अगर एक ईमानदार जांच हो जाए, तो यह सिर्फ प्रदूषण नहीं, हजारों करोड़ की अवैध उगाही का घोटाला साबित होगा।

  • फ्लाई ऐश के नाम पर फर्जी बिलिंग,
  • जीपीएस में डिजिटल हेराफेरी,
  • डंपिंग के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति,
  • और प्रशासन की आंखों के सामने जंगल, खेत, नदियों को राख से भर देना क्या यही है “विकास”?

जहां देखो राख: सड़कों से जंगल, खेत से नदी – सब राख में तब्दील : ट्रकों से उड़ती राख अब सिर्फ खेत नहीं बंजर कर रही, ये लोगों के फेफड़ों में घुसकर उन्हें जीते जी मार रही है। दमा, टीबी, स्किन रोग कैंसर — रायगढ़ के ग्रामीण इलाके एक “मौत की मंडी” बन चुके हैं।

सड़कों किनारे, स्कूलों के पास, नदी के तटों पर, जंगल के भीतर जहां ट्रक जा सकता है, वहां राख फेंकी जा रही है।

रात का काला धुआं – ईएसपी मशीनें फेल, विभाग मूक : रात के अंधेरे में चिमनियों से निकलता है वह काला धुआं जो सीधे लोगों के फेफड़ों में उतरता है। ग्रामीण कहते हैं – “जब तेज़ आवाज़ आती है, तब समझो चिमनी खुली है और ज़हर छोड़ा जा रहा है।”

पर्यावरण विभाग दावा करता है कि ईएसपी मशीनें चालू हैं, लेकिन हकीकत यह है कि ये मशीनें सिर्फ फाइलों में चलती हैं, ज़मीनी हकीकत में नहीं। क्या पर्यावरण विभाग को इसकी भनक नहीं? या फिर हर आवाज़ का दाम तय है?

केलो नदी का जल अब ‘जल’ नहीं, ज़हर है : फ्लाई ऐश अब केवल हवा नहीं, बल्कि रायगढ़ की रगों में बहने वाले पानी को भी जहर में बदल चुका है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि केलो नदी के ऊपरी तट पर जंगलों में डंप की गई फ्लाई ऐश बारिश में बहकर केलो डेम में समा जाती है — और वही पानी फिल्टर होकर शहरवासियों के गिलासों में पहुंचता है।

केलो का पानी अब कैंसर, लिवर और किडनी डिज़ीज़ का वाहक बन चुका है।

जीपीएस : निगरानी नहीं, अब सबसे बड़ा फ्रॉड सिस्टम :ट्रक तो राख फेंक आता है कहीं भी… लेकिन जीपीएस सिस्टम में सेट रहता है कोई और वाहन, जो तय दूरी तय करता है, ताकि बिल पास हो जाए, पेमेंट क्लियर हो जाए, और घोटाला परफेक्टली छुप जाए।

यह है “डिजिटल इंडिया” के नाम पर चल रहा डिजिटल फ्रॉड!

अब नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी – रायगढ़ की पुकार : यह सिर्फ पर्यावरण का सवाल नहीं। यह अगली पीढ़ी के फेफड़ों, खेतों, पानी और जीवन का सवाल है।

  • क्या रायगढ़ केवल उद्योगों की राख ढोने वाला शहर बनकर रह जाएगा?
  • क्या सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधि इस अपराध में मूकदर्शक बने रहेंगे?
  •  कब होगी न्यायिक जांच?
  • कब चलेगा बुलडोजर इस सिंडिकेट पर?

जनता की मांगें :

  1. फ्लाई ऐश डंपिंग और ट्रांसपोर्ट घोटाले की CBI या SIT जांच हो।
  2. ईएसपी मशीनों की थर्ड पार्टी ऑडिट करवाई जाए।
  3. केलो नदी के पानी की स्वतंत्र वैज्ञानिक लैब से जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
  4. दोषी अधिकारियों, ट्रांसपोर्टरों और उद्योगपतियों पर एफआईआर और आपराधिक मुकदमा दर्ज हो।

अब बस बहुत हो चुका। रायगढ़ को अब राख नहीं, हक चाहिए। हवा में ज़हर नहीं, जीने का अधिकार चाहिए। ये लड़ाई अब “विकास बनाम विनाश” की नहीं, “जिंदगी बनाम लालच” की है।

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