रायगढ़

फर्जी ग्रामसभा की आड़ में जंगल हड़पने की साजिश! तमनार के मुड़ागांव में महाजेंको ने लोकतंत्र को रौंदा, प्रशासन मौन…! 

• "पेड़ों की कटाई नहीं, अधिकारों की लूट है ये"...

रायगढ़। यह सिर्फ पेड़ों की कटाई नहीं, लोकतंत्र की हत्या है, ग्रामसभा की अवमानना है, और संविधान के मूल अधिकारों पर खुला हमला है! तमनार ब्लॉक के मुड़ागांव जंगल में महाजेंको कंपनी ने फर्जी ग्रामसभा दस्तावेज तैयार कर न केवल सैकड़ों पेड़ काट डाले, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र को गुमराह करने का दुस्साहस भी किया। अब जब फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हो चुका है, तो सवाल यह उठता है – क्या कलेक्टर दोषियों पर कार्रवाई करेंगे या इस लोकतांत्रिक अपराध में मौन सहभागी बने रहेंगे?

ग्रामसभा हुई ही नहीं – रजिस्टर में कोई उल्लेख नहीं : महाजेंको द्वारा प्रस्तुत तथाकथित ग्रामसभा की तिथि ग्राम पंचायत की पंजी में दर्ज ही नहीं है। जिस व्यक्ति जयशंकर राठिया को ग्रामसभा की अध्यक्षता सौंपी गई, वह सराईटोला पंचायत का निवासी ही नहीं है! पंचायत सचिव और सरपंच – दोनों ने स्पष्ट रूप से कहा कि दस्तावेज़ों पर उनके फर्जी हस्ताक्षर हैं। ग्रामसभा में अनिवार्य प्रशासनिक प्रतिनिधि, वन विभाग के अधिकारी, सूचना पत्र, वीडियोग्राफी – इनमें से कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। यह संपूर्ण कार्रवाई एक सुनियोजित फर्जीवाड़ा है।

यह आदिवासियों की जमीन पर दस्तावेजी डकैती है : ग्रामसभा के नाम पर ना कोई सूचना दी गई, ना बैठक हुई, ना ग्रामीणों को आमंत्रित किया गया- फिर भी जंगल काट दिया गया ! यह सिर्फ हरियाली की कटाई नहीं, हक और हिस्सेदारी की भी कटाई है।

अब जनता पूछ रही है – क्या प्रशासन इस अपराध में भागीदार है?

  • क्या कलेक्टर यह स्पष्ट करेंगे कि बिना ग्रामसभा के रिकॉर्ड के जंगल काटने की अनुमति कैसे दी गई?
  • क्या वन विभाग अपनी अनुपस्थिति पर जवाब देगा?
  • क्या महाजेंको के अधिकारियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467-468 (दस्तावेजों की कूट रचना), 471 (फर्जी दस्तावेज का प्रयोग), 120B (षड्यंत्र), वन अधिकार अधिनियम और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत FIR दर्ज होगी?

“यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, यह लोकतंत्र पर कुल्हाड़ी है” – राजेश त्रिपाठी, सामाजिक कार्यकर्ता

“हम पहले दिन से कहते आ रहे थे कि ग्रामसभा हुई ही नहीं। अब जब दस्तावेज सामने आ गए हैं, तो यह साफ है कि यह लोकतंत्र के नाम पर खुली लूट है। अगर प्रशासन अब भी चुप रहा, तो वह इस अपराध का सीधा सहभागी माना जाएगा।”

अब सिर्फ जांच नहीं, तत्काल कठोर कार्रवाई चाहिए :

  • महाजेंको को ब्लैकलिस्ट किया जाए।
  • फर्जीवाड़े में शामिल अधिकारियों को निलंबित व बर्खास्त किया जाए।
  • ग्रामीणों को मुआवजा और पुनर्वनीकरण की गारंटी दी जाए।
  • और सबसे महत्वपूर्ण — फर्जी ग्रामसभा करने वालों को सलाखों के पीछे भेजा जाए!

जब ग्रामसभा की नकली मुहरों से जंगल बिकने लगे, तब लोकतंत्र की असली मुहर का क्या मूल्य रह जाता है?

यह मुद्दा सिर्फ मुड़ागांव या तमनार का नहीं, यह हर उस गांव का है जहाँ सत्ता और पूंजी की मिलीभगत से जनसंविधान कुचला जा रहा है।

अब वक्त आ गया है – जनता बोले, जंगल बोले, संविधान बोले – “फर्जीवाड़ा नहीं सहेंगे!”

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