# पुरी भगदड़: श्रद्धालुओं की लाशों पर बैठी लापरवाह व्यवस्था! सीएम ने मांगी माफी, मगर सवाल अब भी जिंदा हैं…

पुरी/भुवनेश्वर। जगन्नाथ रथयात्रा के पहले ही दिन पुरी में मची भगदड़ ने ओडिशा सरकार की पोल खोलकर रख दी है। गुंडिचा मंदिर के सामने हजारों श्रद्धालुओं के बीच उमड़ी भीड़ के कारण मची अफरातफरी में कई श्रद्धालु दम घुटने और दबने से जान गंवा बैठे। घायलों की चीख-पुकार और परिजनों की चीखें प्रशासन की असंवेदनशीलता की चुभती गवाही दे रही हैं।
यह हादसा नहीं, सरकारी लापरवाही से उपजा एक प्रशासनिक नरसंहार है और अब, मुख्यमंत्री मोहन माझी की माफी क्या इस खून के छींटों को धो पाएगी?
मुख्यमंत्री माझी की स्वीकारोक्ति: “हमसे चूक हुई…” सीएम माझी ने ट्वीट कर सार्वजनिक माफी मांगी और इसे ‘अक्षम्य चूक’ करार दिया।उन्होंने कहा –
“मैं भगवान जगन्नाथ और उनके भक्तों से क्षमा मांगता हूं। यह दुखद त्रासदी नहीं होनी चाहिए थी। दोषियों पर कार्रवाई होगी।”
लेकिन जनता पूछ रही है – “क्या माफ़ी उन लाशों को जिंदा कर सकती है जो दर्शन के लिए आई थीं और लौटीं लाश बनकर?”
बैठकों का नाटक या जवाबदेही की शुरुआत? – मुख्यमंत्री आवास पर बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में दो उपमुख्यमंत्री और आला अफसर मौजूद रहे। बैठक में “कार्रवाई” की बातें हुईं, मगर सवाल ये है – क्या उन अधिकारियों पर गाज गिरेगी जो भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा व्यवस्था के लिए जिम्मेदार थे? या फिर हमेशा की तरह बलि का बकरा ढूंढा जाएगा?
घटनास्थल बना नरक, प्रशासन बना दर्शक : श्री गुंडिचा मंदिर के पास भगदड़ शुरू होते ही पुलिस-प्रशासन तितर-बितर हो गया। ना एंबुलेंस, ना बैरिकेडिंग, ना कोई गाइडेंस। श्रद्धालु एक-दूसरे के ऊपर गिरते रहे, लोग दबते रहे और प्रशासन खामोशी से देखता रहा।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक –
“भीड़ में कोई कंट्रोल नहीं था। लोगों को धक्का मिल रहा था, पुलिस बस चिल्ला रही थी – हटो, हटो! कोई गाइड नहीं, कोई सहायता नहीं।”
धर्मेंद्र प्रधान की संवेदना और सवालों की बौछार : केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने दुख जताया और घायलों के लिए बेहतर इलाज की बात की। मगर सवाल ये है –क्या संवेदना ही काफी है, जब व्यवस्था जान ले रही हो?
कानून मंत्री की दौड़: घटना के बाद की सक्रियता,पहले क्यों नहीं? –कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन अब घटनास्थल का दौरा कर रहे हैं।उन्होंने कहा –
“स्थिति अब नियंत्रण में है। जांच होगी, कार्रवाई की जाएगी।”
लेकिन यही सवाल उठता है – जब लाशें गिर गईं, तभी क्यों जागी सरकार? भीड़ जुटती रही, प्रशासन सोता रहा!
जनता का आक्रोश: “श्रद्धा की कब्र खुदवा दी सरकार ने!”
सोशल मीडिया पर उबाल है –
- “हर साल यही आयोजन, फिर भी नहीं सुधरती व्यवस्था?”
- “क्या हमारी आस्था की यही कीमत है?”
- “मंदिरों के नाम पर टैक्स और चढ़ावा तो खूब लेते हो, लेकिन सुरक्षा देने में फेल?”
अब आने वाले आयोजनों पर भारी खतरे के बादल : बहुदा यात्रा, सोनावेश और नीलाद्री बिजे जैसे अगामी अनुष्ठानों को लेकर अब गंभीर आशंकाएं जताई जा रही हैं।
क्या फिर कोई और लाश गिरेगी? क्या श्रद्धा फिर खून में सनेगी?
- पुरी में जो हुआ वो हादसा नहीं, व्यवस्था का खूनी मज़ाक था।
- अब जनता को सिर्फ मुआवज़ा नहीं, इंसाफ और जिम्मेदारों की कुर्सी चाहिए।
- माफी मांगना आसान है, लेकिन अगर इस बार भी जांच-रिपोर्टों की कब्र में न्याय दफन हुआ, तो आने वाले आयोजनों में विश्वास नहीं, डर उमड़ेगा।