नई दिल्ली : विशेष राज्य का दर्जा क्या होता है; क्या नीतीश-नायडू की मांग पर मोदी होंगे तैयार??…
नई दिल्ली : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए इसी तर्क का सहारा लेते हैं। उनका कहना है कि झारखंड अलग होने के बाद बिहार राजस्व की कमी और गरीबी से जूझ रहा है। ऐसे ही TDP के मुखिया चंद्रबाबू नायडू भी आंध्र प्रदेश के लिए स्पेशल स्टेटस की मांग करते रहे हैं।
2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी बहुमत से पीछे रह गई। सरकार बनाने के लिए नीतीश और नायडू के साथ की सख्त जरूरत है। ऐसे में ‘विशेष राज्य का दर्जा’ एकबार फिर सुर्खियों में है। जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा है कि बिहार को विशेष दर्जा दिया जाना चाहिए। ये ऐसी बात है जो हमारे दिल में है।
राज्यों को मिलने वाला स्पेशल स्टेटस क्या है, आंध्र प्रदेश और बिहार सालों से इसकी मांग क्यों कर रहे हैं? क्या बीजेपी, नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की इस मांग को मानेगी? भास्कर एक्सप्लेनर में ऐसे ही 5 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…
सवाल-1: राज्यों और केंद्र के बीच पैसे का बंटवारा कैसे होता है, और विशेष दर्जा क्या है, जिसके जरिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू अपने राज्यों के लिए ज्यादा मदद की मांग कर रहे हैं?
जवाब: केंद्र सरकार और राज्य की सरकारों की कमाई मुख्य रूप से कई तरह के टैक्स के जरिए होती है। संघ सूची में डिफेंस, इनकम टैक्स, कस्टम ड्यूटी (विदेश से सामान आयात करने पर लगने वाला टैक्स), रेलवे जैसे विषय हैं। इनसे जुड़े मामलों में टैक्स की दरें तय करना केंद्र का अधिकार होता है। वहीं राज्य सूची के विषय जैसे कि- व्यापार, उद्योग, जंगल आदि के मामलों में राज्य सरकारें टैक्स तय करती हैं। जबकि समवर्ती सूची के विषय- बिजली, स्टाम्प ड्यूटी आदि को लेकर टैक्स लगाने का अधिकार राज्य और केंद्र दोनों का होता है। चूंकि भारत में केंद्र सरकार की कमाई सामान्य तौर पर राज्यों से ज्यादा होती है। इसलिए संविधान के अनुच्छेद 275 के जरिए संसद यानी केंद्र सरकार को इस बात का अधिकार होता है कि वह उन राज्यों को अनुदान दे सके जिन्हें उसकी नजर में मदद की ज्यादा जरूरत है। राजस्व (कमाई) का वह हिस्सा जो केंद्र सरकार राज्यों के साथ बांटती है, उसे डिविसिबल पूल यानी विभाजित किया जा सकने वाला राजस्व कहते हैं। केंद्र और राज्य में कमाई का संतुलित बंटवारा कैसे होगा, राज्यों को डिविसिबल पूल से कितने प्रतिशत पैसा मिलेगा, यह तय करने और नियंत्रित करने का काम वित्त आयोग का होता है।
भारत के संविधान में किसी राज्य को दूसरे राज्यों की तुलना में स्पेशल दर्जा या कोई विशेष लाभ देने का प्रावधान नहीं है। साल 1969 तक केंद्र के पास राज्यों को अनुदान देने का भी कोई तय मानक नहीं था। केंद्र की ओर से राज्यों को विकास और आर्थिक सहयोग की योजनाओं के जरिए ही अनुदान दिए जाते थे। साल 1969 में भारत के पांचवें वित्त आयोग ने आर्थिक और भौगोलिक दिक्कतों का सामना करने वाले राज्यों को विकास में मदद के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की शुरुआत की।
सवाल-2: विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले राज्यों को क्या फायदे मिलते हैं?
जवाब: SCS यानी विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले के आधार पर अनुदान मिलता था।
- इस फार्मूले के तहत तय किया गया कि केंद्र से राज्यों को जो भी मदद दी जाती है, उसका 30% हिस्सा स्पेशल कैटेगरी स्टेटस वाले राज्यों को दिया जाएगा। बाकी बचे सामान्य श्रेणी वाले राज्यों को केंद्र की आर्थिक मदद का 70% हिस्सा दिया जाएगा।
- गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले के तहत विशेष राज्यों को मिलने वाली आर्थिक मदद 90:10 के अनुपात में दी जाती थी। यानी इसके अनुसार केंद्र से मिलने वाली मदद का 90% हिस्सा अनुदान के बतौर जबकि 10% हिस्सा बिना ब्याज के कर्ज के बतौर मिलती थी। वहीं सामान्य श्रेणी राज्यों के लिए यह अनुपात 60:40 या 80:20 का था। माने सामान्य राज्यों की तुलना में विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों पर कर्ज की रकम चुकाने का बोझ बेहद कम होता है।
- हालांकि 2015 से शुरू हुए 14वें वित्त आयोग का कहना था कि ‘स्पेशल कैटगरी स्टेटस केंद्र के संसाधनों पर बोझ है।’ 14वें और उसके बाद 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद, विशेष दर्जा पाए राज्यों को केंद्र से दी जाने वाली मदद, डिविसिबल पूल के टैक्स डिवॉल्यूशन (कर हस्तांतरण) को बढ़ाकर पूरी की जाती है। माने 14वें वित्त आयोग का कहना था कि राज्यों को जो भी मदद देनी है वह उन्हें मिलने वाली राजस्व की हिस्सेदारी बढ़ाकर पूरी कर दी जाए। इसे ऐसे समझिए कि 13 वें वित्त आयोग के अनुसार, केंद्र की टैक्स से होने वाली कमाई का 32% हिस्सा राज्यों को दिया जाता था, लेकिन 14वें वित्त आयोग के आने के बाद इसे 10% बढ़ाकर 42% कर दिया गया। इसके बाद विशेष दर्जा पाए राज्यों को मदद देने के लिए गाडगिल-मुखर्जी के पुराने फार्मूले वाली प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।
- हालांकि विशेष दर्जा पाए राज्यों को सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क, इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स में छूट का प्रावधान है ताकि इन राज्यों में नए उद्योग लगाने और निवेश को बढ़ावा मिल सके।
सवाल-3: आंध्रप्रदेश विशेष राज्य का दर्जा क्यों चाहता है?
जवाब: 2014 में जब आंध्रप्रदेश को बांट कर नया प्रदेश तेलंगाना बनाया गया, तब उसके राजस्व में आई कमी की भरपाई के लिए केंद्र की UPA सरकार ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा किया था। इसके बाद जब केंद्र में मोदी की सरकार बनने के बाद नायडू ने भी आंध्रप्रदेश को विशेष दर्जा देने की मांग की। वह 2019 तक राज्य के सीएम रहे। 2019 में जब जगन मोहन रेड्डी आंध्रप्रदेश के सीएम बने तो उन्होंने भी यह मांग दोहराई ताकि राज्य की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए केंद्र से ज्यादा पैसा मिल सके। अगस्त 2014 में केंद्र सरकार ने योजना आयोग को खत्म कर इसकी जगह नीति आयोग बनाया था। इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक, आंध्र प्रदेश सरकार ने नीति आयोग को कर हस्तांतरण के बाद राज्य को हुए घाटे के बारे में बताया। आंध्र सरकार ने कहा कि 14वें वित्त आयोग ने 2015 से 20 तक, पांच साल की अवधि के लिए अनुमान लगाया था कि आंध्र प्रदेश को 22,113 करोड़ रुपए के राजस्व का घाटा होगा। असल में यह घाटा 66,362 करोड़ रुपए का हुआ। आंध्रप्रदेश के बंटवारे के पहले राज्य पर कुल कर्ज 97,000 करोड़ रुपए था, जो 2018-19 तक बढ़कर 2,58,928 करोड़ रुपए हो गया, जो कि अब 315 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है। आंध्रप्रदेश सरकार का तर्क है कि राज्य का बंटवारा असमान और अन्यायपूर्ण तरीके से हुआ। विभाजित आंध्रप्रदेश को राज्य की लगभग 60% आबादी के अलावा इतना ही कर्ज और देनदारियां हिस्से में आईं जबकि राज्य का राजस्व सिर्फ 47% बचा है। आज के आंध्र प्रदेश में मुख्य रूप से सिर्फ खेती होती है। उसका प्रति व्यक्ति राजस्व भी तेलंगाना से बेहद कम है। आंध्र प्रदेश सरकार का कहना है कि केंद्र की UPA सरकार ने राज्य के बंटवारे की शर्त के रूप में यह वादा किया था कि उसे पांच साल के लिए विशेष दर्जा दिया जाएगा, साथ ही राज्य के विकास के लिए नया निवेश और वित्तीय सहायता भी दी जाएगी। आंध्र प्रदेश को अभी हर साल प्रति व्यक्ति 3,428 करोड़ रुपए का अनुदान मिलता है, जबकि विशेष दर्जा पाए राज्यों को हर साल 5,573 करोड़ रुपए प्रति व्यक्ति अनुदान मिलता है।
सवाल-4: नीतीश कुमार बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग क्यों करते रहे हैं?
जवाब: बिहार की स्पेशल कैटेगरी स्टेटस मांग नई नहीं है। 2005 में जब नीतीश पहली बार बिहार के सीएम बने तब उनका कहना था कि झारखंड के बिहार से अलग होने के बाद बिहार एक पिछड़ा और गरीब राज्य बनकर रह गया है। उसके बाद से लगातार नीतीश बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग करते रहे हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश ने कहा था कि NDA और UPA में से जो भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए तैयार होगा, हम उसका समर्थन करेंगे। बीते साल अक्टूबर में जब बिहार की नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए तब भी विशेष दर्जे की मांग दोहराई। 24 जनवरी 2024 को कर्पूरी ठाकुर की जयंती के मौके पर नीतीश ने कहा कि बिहार की तरक्की के लिए विशेष दर्जा दिए जाने की जरूरत है। बिहार के तर्क हैं कि राज्य की गरीबी और प्राकृतिक संसाधनों की कमी के अलावा, राज्य में सिंचाई के लिए पानी की कमी है। राज्य के उत्तरी इलाके में नियमित बाढ़ और दक्षिणी हिस्से में सूखे की समस्या रहती है। आंध्रप्रदेश की तरह ही बिहार का कहना है कि राज्य के बंटवारे के चलते उद्योगों को झारखंड में भेज दिया गया। जिससे बिहार में रोजगार की कमी हो गई। बीते साल नीतीश ने विशेष दर्जे की मांग के साथ यह तर्क भी दिया था कि बिहार में लगभग 94 लाख गरीब परिवार रहते हैं, ऐसे में अगर पांच साल के लिए विशेष राज्य का दर्जा मिलता है तो बिहार सरकार को योजनाओं में लगाने के लिए जरूरी 2.5 लाख रुपए जुटाने में कुछ मदद मिलेगी।
सवाल-5: क्या अब किसी राज्य को स्पेशल कैटेगरी स्टेट का दर्जा दिया जा सकता है?
जवाब: जैसा हमने शुरू में बताया कि संविधान में किसी राज्य को दूसरे की तुलना में स्पेशल ट्रीटमेंट देने का कोई प्रावधान नहीं है। राज्यों को केंद्र की तरफ से आर्थिक मदद के लिए स्पेशल कैटेगरी का दर्जा योजना आयोग द्वारा दिया जाता था। 2014 में ही मोदी सरकार, योजना आयोग को खत्म कर उसकी जगह नीति आयोग लेकर आई थी। नीति आयोग के पास अब स्पेशल कैटेगरी स्टेटस के आधार पर किसी राज्य को विशेष फंड देने की शक्ति नहीं है। ऐसे में अब केंद्र सरकार के पास नए सिरे से किसी राज्य को विशेष सहायता देने का प्रावधान नहीं है। अब किसी भी राज्य को विशेष दर्जा देने के लिए केंद्र को नए सिरे से कोई प्रस्ताव पारित करना होगा।
सवाल-6: नीतीश और नायडू अगर विशेष राज्य का दर्जा देने की शर्त रखते हैं तो बीजेपी के पास क्या विकल्प हैं?
जवाब: 2014 में जब केंद्र में NDA की सरकार बनी तब, नायडू की पार्टी, NDA का हिस्सा थी। नायडू ने उस समय भी आंध्रप्रदेश को विशेष दर्जा देने की मांग उस समय भी आंध्रप्रदेश को विशेष दर्जा देने की मांग की थी। जब केंद्र ने उनकी मांग नहीं पूरी की तो 2018 में नायडू ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल अपने दो मंत्रियों को इस्तीफा दिलवा दिया और खुद NDA से अलग हो गए। इसके बाद नायडू लगातार इस मांग को लेकर प्रयास करते रहे। आंध्रप्रदेश की विधानसभा में उन्होंने कहा कि वह इसके लिए बीजेपी के बड़े नेताओं से मिलने 29 बार दिल्ली गए। जगन मोहन रेड्डी ने उनकी इस असफलता को लेकर लगातार हमला किया। हालांकि जगन ने फरवरी 2024 में विधानसभा में कहा कि वह चाहते हैं कि किसी भी पार्टी को लोकसभा में पूर्ण बहुमत न मिले ताकि आंध्रप्रदेश, विशेष दर्जे की मांग के लिए केंद्र से सौदेबाजी कर सके। अब नायडू के पास वही मौका है।
राजनीतिक विश्लेषक विजय त्रिवेदी कहते हैं, ‘बीजेपी अपने दम पर बहुमत नहीं ला पाई है। दस साल में पहली बार बीजेपी दबाव में है। सरकार बनाने के लिए उसे NDA में शामिल नायडू की अगुवाई वाली TDP और नीतीश कुमार की पार्टी JDU के सांसदों की जरूरत है। कांग्रेस ने भी कहा है कि आंध्रप्रदेश के लिए स्पेशल स्टेट, आंध्रप्रदेश में कांग्रेस के घोषणापत्र का हिस्सा था और अगर केंद्र में INDIA गठबंधन सत्ता में आता है तो हम इस मांग को स्वीकार करेंगे। ऐसे में JDU और TDP अपनी मांगों को लेकर बीजेपी पर दबाव डालने की स्थिति में हैं। संभावना है कि एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया जाएगा, और बीजेपी को अपने कोर एजेंडे कोठंडे बस्ते में डालना पड़ेगा। इसके अलावा राज्यों की विशेष दर्जे की मांग पर गौर किया जा सकता है। UPA के वादे की तरह, बीजेपी भी एक निश्चित अवधि के लिए विशेष दर्जे का वादा करना पड़ सकता है।
विजय त्रिवेदी के मुताबिक, ‘यह कहना ठीक नहीं होगा कि विशेष दर्जे की मांग पूरी करने की शर्त पर ही JDU और TDP सरकार बनाने के लिए बीजेपी को समर्थन देंगे। सरकार बनाने के लिए यह मांग शर्त के तौर पर रखे जाने की संभावना कम है, क्योंकि JDU को बीजेपी के आंध्रप्रदेश में चुनाव लड़ना है। हालांकि जब गठबंधन तोड़ना हो तो ऐसी मांगें बहाने की तरह काम में आती हैं।’