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नई दिल्ली : बस्तर के नक्सल हिंसा में अपनों को खोए पीड़ितों ने दिल्ली में बताया दर्द, बोले-हमारा मानवाधिकार आखिर है कहां ??…

छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सल हिंसा में अपनों को खोए पीड़ितों ने देश की राजधानी दिल्ली में अपना दर्द बताया। इन पीड़ितों ने सवाल पूछा कि हमारी इस स्थिति के लिए अर्बन नक्सली ज़िम्मेदार हैं। हमारे लिए मानवाधिकार कहां गया ?

बस्तर शांति समिति के बैनर पर दिल्ली पहुंचे नक्सल हिंसा से पीड़ित बस्तरवासियों का दल दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पहुंचा। यहां समिति के सदस्य मंगऊ राम कावड़े ने बताया कि हम जेनएयू में आकर बस्तर की वास्तविक स्थिति की अवगत कराना चाहते हैं। मंगऊ राम ने कहा कि हमने सुना है कि जेएनयू में नक्सलवाद-माओवाद के मुद्दें पर बड़े-बड़े कार्यक्रम होते हैं। यहां के बुद्धिजीवी नक्सलवादियों के मानवाधिकार की बात करते हैं, लेकिन हमने कभी यहां नक्सल पीड़ितों की बात होती नहीं देखी। यह एक बड़ा कारण है कि हम जेनएयू परिसर में आकर अपनी व्यथा, अपनी पीड़ा को बताना चाहते थे। एबीवीपी की जेनएयू इकाई ने बस्तर शांति समिति को परिसर में आमंत्रित किया था। साबरमती हॉस्टल के सामने पीड़ितों ने अपनी आपबीती बताई। बस्तरवासियों ने यह भी कहा कि माओवादी हिंसा को लेकर जिस तरह से अर्बन नक्सल समूह और कम्युनिस्ट विचारक बचाव की मुद्रा में दिखाई देते हैं, वो लोग भी उनके साथ हो रहे अन्याय के जिम्मेदार हैं.पीड़ितों ने कहा कि अर्बन नक्सलियों और तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से हम पूछना चाहते हैं कि ‘आपको हम आदिवासियों के मानवाधिकार क्यों दिखाई नहीं देते हैं?’

बस्तर शांति समिति के इस कार्यक्रम में ‘आमचो बस्तर’ के लेखक एवं विचारक राजीव रंजन प्रसाद ने भी अपनी बात रखी। दंतेवाड़ा के बचेली में अपना लंबा समय बिताने वाले राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि उनके लिए यह क्षण भावुक और आक्रोशित दोनों करने वाला है। उन्होंने कहा कि दिल्ली की धरती पर, जेएनयू की धरती पर अर्बन नक्सलियों और माओवादियों की बातें तो कई बार की गई, लेकिन वास्तविक नक्सल पीड़ितों की आवाज़ दिल्ली तक पहुंचने में 4 दशक लग गए। उन्होंने कहा कि बस्तर की समस्या का समाधान कम्युनिस्ट एक्टिविज़्म और माओवादी आतंक से नहीं हो सकता है।

पीड़ितों ने बताया अपना दर्द : बस्तर से जेनएयू पहुंचे नक्सल पीड़ित केदारनाथ कश्यप ने बताया कि कैसे माओवादियों ने उनके सामने ही उनके भाई की हत्या की थी। पीड़ित ने बताया कि माओवादियों दोनों भाइयों पर बंदूक से हमला किया था, जिसके बाद केदारनाथ के भाई के पेट को चीरते हुए अमाशय को काटकर निर्दयता से उसकी हत्या की थी.वहीं केदारनाथ के पैर को चीरते हुए नक्सलियों की गोली निकली थी।

पीड़ित सियाराम रामटेके ने बताया कि जब वो अपने खेत में काम करने के लिए पहुंचे थे, तभी माओवादियों ने उन पर गोली चलाई। उनकी जान तो बच गई लेकिन गोली उनके कमर को पार करते हुए निकल गई। सियाराम कमर के नीचे से पूरी तरह दिव्यांग हैं। ऐसी कहानी सभी पीड़ितों की है, जिनमें से किसी के पैर नहीं हैं, तो किसी ने आंखें खो दी है, किसी के कान में चोट है, तो कोई चल नहीं सकता है। ऐसे ही पीड़ितों ने अपनी व्यथा को जेनएयू में सुनाया है।

बस्तर शांति समिति के सदस्य जयराम दास ने बताया कि बस्तर के नक्सल हिंसा से पीड़ित लोग आज जेनएयू के उन बुद्धिजीवियों को आइना दिखाने के लिए आए हैं, जिन्हें नक्सलवाद ‘क्रांति’ लगती है। पीड़ितों ने कहा कि वो बस्तर में माओवादी आतंक की सच्चाई बताकर अपनी पीड़ा बताने के साथ-साथ वहां के समाधान तलाशने दिल्ली आए हैं और चाहते हैं कि जेनएयू का बौद्धिक जगत और यहां के विद्यार्थी इनकी पीड़ा को समझते हुए माओवादी आतंक को खत्म करने के लिए अपनी आवाज़ उठाए।

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