नई दिल्ली : झूठे मामले दर्ज करने या सबूत गढ़ने वाले पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं-सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली : कॉन्स्टिट्यूशन की दुहाई देकर फर्जी मुकदमे गढ़ने वाले और इन फर्जी मुकदमो पर अपनी निजी खुन्नस निकालने के लिए पुलिस एक्ट को अपना हथियार बनाने वाले वर्दीधारियों को अब सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि पुलिस की कार्यशैली से व्यथित ऐसे कई पीड़ित सिस्टम में बैठे अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं जहां ऐसे पुलिस वालों को 197 crpc का कवच मिला हुआ है और इस कवच का इस्तेमाल आतंक बरपाने के लिए बेगुनाहों पर किया जा रहा है।
197 crpc की वाहियात कवच की वजह से पीड़ित अपनी लड़ाई को मुकम्मल अंजाम तक पहुंचाने में पीछे रह जा रहे हैं । लेकिन अब ऐसा नही होगा क्योंकि फर्जी मुकदमों के बोझ तले दबे सिस्टम को राहत देते हुए शीर्ष न्यायालय ने फर्जी मामला दर्ज करने और फर्जी सबूत गढ़ने वाले पुलिस अधिकारियों पर अपने फैसले से नकेल कसने के काम कर दिया है । कोर्ट ने कहा कि झूठा मामला दर्ज करने का आरोपी पुलिस अधिकारी यह दावा नहीं कर सकता कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 197 के तहत अनुमति के बिना उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
धारा 197 CrPC का संरक्षण केवल आधिकारिक कर्तव्यों के दौरान किए गए कार्यों के लिए उपलब्ध है। शीर्ष कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि, चूंकि सबूत गढ़ना और फर्जी मामले दर्ज करना पुलिस अधिकारी के आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं है, इसलिए धारा 197 CrPC के तहत संरक्षण ऐसे कृत्यों पर लागू नहीं होता। शीर्ष कोर्ट ने कहा हैं कि “इसका अर्थ यह है कि जब किसी पुलिस अधिकारी पर झूठा मामला दर्ज करने का आरोप लगाया जाता है तो वह यह दावा नहीं कर सकता कि धारा 197 CrPC के तहत अभियोजन के लिए अनुमति की आवश्यकता थी, क्योंकि फर्जी मामला दर्ज करना और उससे संबंधित सबूत या दस्तावेज गढ़ना किसी सरकारी अधिकारी के आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा नहीं हो सकता।”
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने हत्या के एक मामले में आरोपी को बचाने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार करने के आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया। पीड़ित की याचिका हाईकोर्ट ने यह कहते हुए रद्द किया था कि प्रतिवादी नेपुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने से पहले धारा 197 CrPC के तहत पूर्व मंजूरी नहीं ली है । शीर्ष न्यायालय ने कहा कि धारा 197 CrPC के तहत मंजूरी नही ली गयी है यह कहते हुए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ पीड़ित की याचिका रद्द करने में हाईकोर्ट ने गलती की है। साथ ही न्यायालय ने कहा कि जब लोक सेवक के खिलाफ मामला प्रारंभिक चरण में है तो न्यायालयों के लिए मामला रद्द करना उचित नहीं है, क्योंकि उचित ट्रायल कोर्ट के समक्ष समय आने पर साक्ष्य प्रस्तुत किया जा सकता है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि लोक सेवक द्वारा किया गया कृत्य लोक सेवक के आधिकारिक कर्तव्यों के अंतर्गत आता है या नहीं।
मामले के तथ्यों पर वापस आते हुए शीर्ष न्यायालय ने विभिन्न प्राधिकारियों पर भरोसा करते हुए माना कि दस्तावेजों का निर्माण प्रतिवादी पुलिस अधिकारी के आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं है, इसलिए उन पर मुकदमा चलाने के लिए किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। जस्टिस पारदीवाला द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि, “दोहराव की कीमत पर हम कहते हैं कि धारा 197 CrPC के आवेदन पर कानून की स्थिति स्पष्ट है – कि इसे प्रत्येक मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर तय किया जाना चाहिए।
केस टाइटल :- ओम प्रकाश यादव बनाम निरंजन कुमार
भड़ास 4 मीडिया से साभार