धरमजयगढ़ – “राष्ट्रीय राजमार्ग पर माफियाओं का कब्जा! शासन की आंखों के सामने चल रही मुआवजा लूट की साजिश!”…
• NHAI की चेतावनी के बाद भी चुप क्यों है प्रशासन? कहीं भीतर ही न हो गड़बड़ी का केंद्र...

धरमजयगढ़ | उरगा-पथलगांव राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 130Y के निर्माण कार्य में इस समय सबसे बड़ी बाधा बनकर उभरा है – प्रस्तावित रूट में हो रहा सुनियोजित अवैध निर्माण और अतिक्रमण, जिससे बहुप्रतीक्षित सड़क परियोजना संकट में आ गई है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने इस गंभीर मामले में रायगढ़ कलेक्टर को पत्र भेजते हुए तत्काल कार्रवाई की मांग की है। इस पत्र में बताया गया है कि धरमजयगढ़ क्षेत्र में प्रस्तावित एलाइमेंट के भीतर बिना अनुमति कई निर्माण कार्य शुरू कर दिए गए हैं, जो न सिर्फ पूरी परियोजना को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि शासन को संभावित आर्थिक क्षति भी पहुँचा सकते हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, डीपीआर सलाहकार एजेंसी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह सामने आया कि किमी 114+410 से किमी 121+450 तक के रूट में कई जगहों पर कुछ लोगों ने जानबूझकर टीन शेड और पक्के पोल्ट्री शेड जैसे ढांचे खड़े कर लिए हैं। यह निर्माण कार्य राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हैं, न ही इन्हें किसी प्रकार की वैध अनुमति प्राप्त है। इसके बावजूद निर्माण कार्य जिस तेजी से किया गया, उससे यह आशंका और भी गहराई है कि यह सब शासन से मुआवजा प्राप्त करने की मंशा से किया गया है, यानी योजनाबद्ध रूप से सार्वजनिक धन की लूट की तैयारी चल रही है।
एनएचएआई की टीम ने 28 जून 2025 को भूमि अर्जन अधिकारी, राजस्व अधिकारियों और अन्य प्रतिनिधियों के साथ मिलकर संयुक्त निरीक्षण किया। निरीक्षण में जिन निर्माणों की पुष्टि हुई, उनके फोटोग्राफ्स और वीडियो फुटेज भी संलग्न कर प्रशासन को सौंप दिए गए हैं। निरीक्षण रिपोर्ट में यह स्पष्ट कहा गया है कि यदि समय रहते इन अवैध निर्माणों को नहीं रोका गया, तो परियोजना में बड़ी देरी, लागत में भारी वृद्धि और शासन की छवि को गहरी क्षति हो सकती है।
इस पूरे मामले में अब तक प्रशासन की भूमिका संदेह के घेरे में है। एक तरफ जहां एनएचएआई जैसी केंद्रीय एजेंसी सख्त कार्रवाई की मांग कर रही है, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक स्तर पर कोई निर्णायक कार्यवाही नहीं हो पाई है। ना तो अतिक्रमण हटाने की पहल की गई, ना ही अवैध निर्माण करने वालों पर कोई आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया। इससे यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासन की चुप्पी किसी मिलीभगत या दबाव का परिणाम तो नहीं?
इस परियोजना का उद्देश्य क्षेत्रीय संपर्क को मजबूत करना, यातायात को सुगम बनाना और स्थानीय आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना है, लेकिन यदि इस प्रकार की भूमाफिया शैली में मुआवजे की लूट और कब्जा संस्कृति को प्रश्रय मिलता रहा, तो ऐसी योजनाएं कभी समय पर पूरी नहीं हो पाएंगी। यह स्थिति केवल धरमजयगढ़ ही नहीं, पूरे राज्य की विकास प्राथमिकताओं पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
जब इस विषय में संबंधित अधिकारियों से संपर्क कर प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की गई, तो जवाब मिला कि वे “मुख्यालय से बाहर हैं।” यह रवैया दर्शाता है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग या तो गंभीर नहीं हैं, या फिर संपर्क से बचने की रणनीति अपना रहे हैं। यह स्थिति न सिर्फ अफसरशाही की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि योजनाओं को जमीन पर उतारने में सबसे बड़ी बाधा अब ‘जनता नहीं, बल्कि खुद व्यवस्था’ बन चुकी है।
अब जनता यह जानना चाहती है कि क्या शासन इस मामले को गंभीरता से लेकर अवैध निर्माणों को तत्काल हटाएगा? क्या मुआवजे की फर्जी मांग करने वालों पर कार्रवाई होगी? और क्या प्रशासनिक जिम्मेदारियों से बचने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी? यह सब सवाल आने वाले दिनों में प्रशासन की साख और पारदर्शिता की असली परीक्षा बनेंगे।