धरमजयगढ़ में माफिया राज की खुली तस्वीर : मांड नदी की रेत लूटी जा रही, और पुलिस-प्रशासन बना तमाशबीन…

रायगढ़। जिले के धरमजयगढ़ की मांड नदी आज चीख रही है—नदी के सीने को हर दिन सैकड़ों ट्रैक्टर चीर रहे हैं। रेत माफिया बेखौफ लूट मचा रहे हैं, और सबसे खतरनाक बात ये है कि इस खुली लूट पर पुलिस और खनिज विभाग की चुप्पी संदेह के घेरे में है। सवाल उठता है—क्या धरमजयगढ़ में अब कानून का राज है या माफिया का?
जहां सरकार की निगरानी होनी चाहिए, वहां अब माफियाओं का कब्जा : मांड नदी किनारे हर रोज़ रेत के ट्रैक्टरों की कतार लग रही है। नियम, कानून, पर्यावरण सब कुछ कुचला जा रहा है। भालूपखना गांव में निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजना की आड़ में माफिया ने पूरी नदी को खोद डाला है। आरोप है कि परिवहन का ठेका पाने वाली ठेकेदार मुस्कान अग्रवाल द्वारा अवैध रूप से निकाली गई रेत लैलूंगा जैसे क्षेत्रों में मोटे दामों पर बेची जा रही है।
विकास के नाम पर लूट की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं मिले। सिसरिंगा क्षेत्र में हर दिन दर्जनों ट्रैक्टर अवैध रेत ढो रहे हैं, और न कोई जांच, न कोई जब्ती। पुलिस, खनिज विभाग और स्थानीय प्रशासन पूरी तरह निष्क्रिय दिखाई दे रहा है। क्या यह महज संयोग है या एक सुनियोजित सांठगांठ?
लाखों का राजस्व नुकसान, पर्यावरण की बर्बादी फिर भी चुप है प्रशासन : रेत तस्करी से हर साल सरकारी खजाने को लाखों की चोट पहुंच रही है। मांड नदी का अस्तित्व संकट में है। जैव विविधता नष्ट हो रही है। और इस सब के बीच अफसरों की चुप्पी इस बात का संकेत है कि खेल सिर्फ रेत का नहीं, ‘हिस्सेदारी’ का है।
जनता का सवाल सीधा है – चुप क्यों हो प्रशासन? डर किससे है? : धरमजयगढ़ की जनता अब चुप नहीं बैठने वाली। पंचायतों में विरोध की चिंगारी सुलग रही है, जो कभी भी जन आंदोलन का शोला बन सकती है। लोग जानना चाहते हैं:
- मांड नदी की लूट कब रुकेगी?
- माफियाओं पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
- क्या अधिकारी अपने पद की शपथ भूल चुके हैं?
यह सिर्फ रेत की लड़ाई नहीं है-यह धरमजयगढ़ के स्वाभिमान की लड़ाई है : आज मांग केवल कार्रवाई की नहीं है—मांग है पारदर्शिता, जवाबदेही और जन सरोकारों की रक्षा की। अगर शासन-प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो जनता सड़कों पर उतरकर अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़ेगी। और उस दिन न माफिया बचेगा, न उसका संरक्षक।