रायगढ़

धरमजयगढ़ का मिड डे मील बना मिड डे ‘मिलावट’ – बच्चों के हिस्से का निवाला कौन खा गया?…

धरमजयगढ़। छत्तीसगढ़ शासन के ‘मध्यान्ह भोजन योजना’ के अंतर्गत बच्चों को पोषण देने का दावा सिर्फ कागज़ों में चमकता है। हकीकत देखें तो धरमजयगढ़ के चिड़ोडीह गांव के स्कूल में बच्चों की थाली में भर रहा है सिर्फ अपमान, भूख और लापरवाही का कड़वा स्वाद।

थाली में नहीं पोषण, परोसी जा रही है शासन की नाकामी : चिड़ोडीह के प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक शाला में मध्यान्ह भोजन योजना पूरी तरह मज़ाक बनकर रह गई है। शुक्रवार को थाली में दाल, आलू-बड़ी की सब्ज़ी और अचार दिए जाने थे, लेकिन जो परोसा गया वो शर्मनाक था- पानी में नमक और हल्दी डालकर दाल का नाम दिया गया, और सब्जी के नाम पर मिले गिनती के दो उबले आलू।

बच्चों ने बताया कि “हर दिन ऐसा ही खाना दिया जाता है, अचार और पापड़ तो कभी देखा ही नहीं।”

सवाल यह है – क्या शासन की नजर इन बच्चों की थाली तक कभी पहुंचती भी है, या सिर्फ बजट की फाइलों तक सीमित रह गई है?…

शिक्षा के मंदिर में डर, तानाशाही और गंदगी का राज : जब प्रधानपाठिका से बच्चों की संख्या या भोजन की स्थिति पूछी गई तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया “मैं कोई जानकारी नहीं दूंगी।”

बच्चे कहीं बैठकर नहीं, घूम-घूमकर खा रहे हैं खाना : इस स्कूल में न तो भोजन व्यवस्था है, न अनुशासन।

बच्चे थाली लेकर स्कूल के आंगन में इधर-उधर घूमते दिखते हैं, कुछ तो पत्थरों पर बैठकर खाना खा रहे हैं।
पूछने पर शिक्षक सफाई देते हैं “आज ही ऐसा हुआ है।”
लेकिन बच्चों की बात कुछ और ही कहती है “हर दिन ऐसा ही होता है।”

क्या यहीं पर बच्चों को ‘संस्कार’ सिखाए जाते हैं, या सिस्टम खुद उन्हें अपमान सहना सिखा रहा है?

कक्षा में गंदगी, दीवारों पर सीलन- स्कूल या कूड़ाघर? –स्कूल परिसर में गंदगी, दीवारों पर सीलन, आंगन में कीचड़ और जलभराव की स्थिति साफ़ देखी जा सकती है। वहीं दीवार पर मध्यान्ह भोजन का मेन्यू चस्पा है, जैसे यह व्यवस्था का मजाक उड़ाने के लिए लगाया गया हो। “स्वच्छ भारत” का नारा यहां सिर्फ एक पोस्टर बनकर दीवार पर टंगा है, ज़मीनी हकीकत उसके ठीक उलट है।

क्या अधिकारी जागेंगे या फिर फाइलों में दबेगा बच्चों का भविष्य? अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि-

  • क्या जिला एवं खंड शिक्षा अधिकारी इस पूरे मामले की गंभीरता से जांच करेंगे?
  • क्या बच्चों के हिस्से का भोजन हड़पने वालों पर कार्रवाई होगी?
  • क्या इस स्कूल को फिर से शिक्षा का मंदिर बनाया जाएगा या यह सिस्टम की नाकामी का नमूना बनकर रह जाएगा?

यदि अब भी कोई कार्रवाई नहीं होती, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि प्रशासन सिर्फ भाषण में संवेदनशील है, जमीनी हकीकत में नहीं।

अब सिर्फ सवाल नहीं, जनप्रतिरोध की शुरुआत होनी चाहिए :

  • चिड़ोडीह स्कूल की स्थिति उस बर्फ की चोटी है जिसके नीचे पूरा तंत्र जड़ से सड़ा हुआ है।
  • अगर इस खबर को पढ़ने के बाद भी जिम्मेदार अधिकारी मौन रहते हैं, तो यह लापरवाही नहीं अपराध है।
  • और जनता का मौन रहना अब बच्चों के भविष्य से गद्दारी होगा।

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