राष्ट्रीय

डर खत्म, कलम आज़ाद : लोकतंत्र की सबसे बड़ी जीत का एलान…

नई दिल्ली। भारत की सर्वोच्च अदालत ने सत्ता की दीवारों पर सच्चाई का हथौड़ा चला दिया है। फैसला आया नहीं, धमाका हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है। सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं, पत्रकार का अधिकार है। अब न सवाल पूछने पर केस चलेगा, न सच कहने पर सज़ा मिलेगी।

कोर्ट की हर पंक्ति सत्ता के झूठ को चीरती है, हर शब्द उन साजिशों को उजागर करता है जो सालों से पत्रकारों की आवाज़ कुचलने के लिए रची जाती रही हैं।

  • अब कलम को हथकड़ी नहीं लगेगी।
  • अब सच को गला घोंटकर नहीं मारा जाएगा।
  • अब जो बोलेगा, वो टूटेगा नहीं और जो टूटेगा, वो इतिहास बनेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, संविधान का अनुच्छेद 19(1) हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है और पत्रकार इसका सबसे मुखर प्रतिनिधि है। अगर सरकार इस आलोचना से घबराती है, तो उसे लोकतंत्र नहीं, तानाशाही का अभ्यास करना चाहिए। यह फैसला सत्ता के उस अहंकार को नष्ट करता है जिसमें वे सोचते हैं कि पत्रकारिता उनकी गुलाम है। यह फैसला हर उस रिपोर्टर, हर उस स्वतंत्र आवाज़ को न्याय देता है जिसे धमकाया गया, झूठे मुकदमों में फंसाया गया, मारा गया।

  • अब डर खत्म।
  • अब खामोशी खत्म।
  • अब हर खबर बारूद बनेगी।
  • हर रिपोर्ट सत्ता की नींव हिला देगी।

प्रेस परिषद ने कहा : यह फैसला आज़ाद पत्रकारिता का शंखनाद है। यह हर उस पत्रकार के चेहरे पर मुस्कान और कलम में ज्वालामुखी भर देगा, जो अब तक सत्ता की तलवारों से घायल था।

यह खबर सिर्फ अख़बार की हेडलाइन नहीं, क्रांति का उद्घोष है।
अब सवाल पूछना राष्ट्रनिर्माण है।
अब सत्ता से टकराना राष्ट्रसेवा है।
अब सच बोलना ही असली देशभक्ति है।

अब तय है : जो सच के साथ खड़ा है, वही इतिहास लिखेगा।

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