जशपुर

जशपुर : “पुलिया खस्ताहाल नहीं, सरकार की नीयत बह गई!” – एनएच-43 पर युवा कांग्रेस का व्यंग्यात्मक हल्ला बोल, अब विकास की नहीं, ‘तेरहवीं की तारीख’ तय होगी…

कांसाबेल। छत्तीसगढ़ में अब सड़कें सिर्फ Google Map में ठीक दिखती हैं, ज़मीन पर नहीं। और जब पुलिया खस्ताहाल हो जाए, रास्ता समा जाए, फिर भी सत्ता मुस्कुराए  तब युवा कांग्रेस जैसे संगठन को सड़क पर उतरना ही पड़ता है, क्योंकि सरकार तो पहले ही “हवा में” है! एनएच-43 के लमडाँड़ स्थित मैनी पुल पर जो चल रहा है, वो ट्रैफिक नहीं, “त्रासदी” है। और इस त्रासदी पर सरकार का जवाब – “हम देख रहे हैं”, उतना ही भरोसेमंद है जितना नेता का वादा।

धरना नहीं, सियासत का सर्जिकल स्ट्राइक था ये!

पूर्व युवा कांग्रेस जिलाध्यक्ष रवि शर्मा की अगुवाई में सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उस पुल पर धरना दिया जिस पर चलना अब किसी स्टंट से कम नहीं। रवि शर्मा का व्यंग्यभरा ऐलान था –

“अब सड़क नहीं बनी तो सरकार की तेरहवीं हम यहीं करेंगे। और ये तेरहवीं छत्तीसगढ़ी रीति-रिवाज से नहीं, सियासी संस्कारों से होगी।”

हेलीकॉप्टर में उड़ता विकास, ज़मीन पर गड्ढों में गिरती जनता : रवि शर्मा ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की हेलीकॉप्टर ब्रांड राजनीति पर जमकर तंज कसा —

“हमारे जशपुर को तीन गगनचुंबी सफलताएं मिली हैं:

  1. रोज हेलीकॉप्टर आता है — जैसे विकास VIP लंच पर निकला हो।
  2. जनता को अब सड़कें नहीं, हेलीकॉप्टर देखने का सौभाग्य मिल रहा है।
  3. भाजपा कार्यकर्ता हेलीकॉप्टर की सीट के लिए आपस में लड़ रहे हैं — आज मैं बैठा, कल तू बैठना।”

“पर दुर्भाग्य से, आम जनता अब भी उसी पुल पर फंसी है जहां न रेलिंग है, न भरोसा।”

एनएच प्रशासन – वो विभाग जो ‘सुन’ नहीं सकता, ‘सुधर’ नहीं सकता : एनएच-43 के मैनी पुल की हालत ऐसी है कि वहां रेड कार्पेट नहीं, “रेड अलर्ट” चाहिए। गड्ढे इतने परिपक्व हो चुके हैं कि उन पर अब “लोकपाल यात्रा” शुरू की जा सकती है।

“सवाल ये नहीं कि पुल कब गिरेगा, सवाल ये है कि सरकार कब गिरेगी?”

धरना स्थल नहीं, लोकतंत्र की सर्जरी का ऑपरेशन थिएटर था ये : धरना में मौजूद जिलाध्यक्ष अजित साय, कार्यकारी अध्यक्ष संजय पाठक, विधानसभा अध्यक्ष रमेश यादव, विवेकानंद महंत, अभिमन्यु सिदार, अमित एक्का, मयंक रोहिला, अंकित गोयल, अरशद खान समेत दर्जनों नेताओं ने एक सुर में कहा –

“अब चुप्पी नहीं चलेगी। पुल की मरम्मत नहीं हुई तो अगली बार इस पर नारे नहीं गूंजेंगे, सियासी संस्कार होंगे।”

अब आंदोलन की नहीं, अंतिम संस्कार की उलटी गिनती शुरू :

✅ चक्का जाम होगा
✅ तेरहवीं होगी
✅ और फिर विकास के नाम पर जो ‘हेलीकॉप्टर-हेलीकॉप्टर’ खेला गया है, उसका ब्लैक बॉक्स भी खोला जाएगा

क्योंकि अब सवाल ये नहीं कि ‘कब बनेगा पुल’, सवाल ये है ‘कब उठेगा विश्वास का अंतिम शव?’ और अगर अब भी सरकार न जागी, तो अगली बार पुल नहीं, कुर्सी दरकेगी… और जनता ताली नहीं बजाएगी – शंखनाद करेगी।

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