जांजगीर-चांपा

जनता पर FIR, अफसरों को इनाम : सड़क मांगी तो मुकदमा मिला!…

जांजगीर। छत्तीसगढ़ में सड़कें नहीं बन रहीं, लेकिन जनता की आवाज़ को कुचलने की मशीनरी पूरी रफ्तार से चल रही है। जांजगीर जिले के ग्राम जर्वे (च) में जर्जर सड़कों से परेशान ग्रामीणों ने जब खोखसा ओवरब्रिज (NH-49) पर चक्काजाम किया, तो सरकार ने मरम्मत की पहल करने की बजाय प्रदर्शनकारियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज कर दिया

अब सड़क मांगना भी अपराध है? – 30 जून की सुबह लगभग 11 बजे, ग्राम सरपंच, कांग्रेस विधायक ब्यास नारायण कश्यप, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने मिलकर गांव की बदहाल सड़क और प्रशासन की अनदेखी के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। लेकिन पुलिस ने इन पर भारतीय न्याय संहिता और बाल संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर दिया, यह आरोप लगाते हुए कि चक्काजाम में स्कूली बच्चों को भी शामिल किया गया था।

सवाल यह है –

👉 जो सड़क नहीं बनवा सका, वो निर्दोष;
और जो सड़क की मांग कर रहा है, वही आरोपी?

विकास के दावे जमीनी हकीकत से कोसों दूर : जर्वे (च) की सड़कें वर्षों से खस्ताहाल हैं। एक साल पहले भी ग्रामीणों ने इसी मुद्दे पर प्रदर्शन किया था, लेकिन प्रशासन ने आश्वासन देकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। आज तक ना मरम्मत हुई, ना टेंडर प्रक्रिया शुरू हुई। ऐसे में जनता का आक्रोश फूटना स्वाभाविक है

बच्चे नहीं “उपकरण”, वे तो हालात के गवाह हैं : प्रशासन का आरोप है कि प्रदर्शन में स्कूली बच्चों को भी शामिल किया गया।

प्रश्न यह है कि क्या बच्चों को हर दिन इन्हीं गड्ढों से भरी सड़कों से स्कूल भेजना कानूनन सही है?
जब शासन खुद बच्चों को बदहाल रास्तों से गुजरने पर मजबूर करता है, तो क्या यह बाल अधिकारों का उल्लंघन नहीं है?

विधायक की चेतावनी – “सरकार नहीं बनाएगी तो मैं बनवाऊंगा” : विधायक ब्यास नारायण कश्यप ने प्रदर्शन के दौरान स्पष्ट घोषणा की –

“यदि एक सप्ताह में सड़क मरम्मत का कार्य शुरू नहीं होता और दिसंबर तक टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तो मैं अपनी विधायक निधि से 3 करोड़ रुपये खर्च कर सड़क निर्माण कराऊंगा।”

प्रशासन की दोहरी नीति – वादे जनता से, कार्रवाई जनता पर : प्रदर्शन समाप्त कराने पहुंचे अपर कलेक्टर ने फोन पर कलेक्टर और विधायक के बीच संवाद करवाया। कलेक्टर ने एक सप्ताह में मरम्मत शुरू कराने और दिसंबर तक निर्माण कार्य शुरू करने का वादा किया।

लेकिन एक ओर आश्वासन दिया गया, और दूसरी ओर FIR दर्ज कर दी गई। यही है आज के “सुशासन” का असली चेहरा।

क्या यह लोकतंत्र है या सत्ता की तानाशाही :

  • क्या जनता का शांतिपूर्ण प्रदर्शन अब गैरकानूनी है?
  • क्या जनप्रतिनिधि अगर जनता के साथ खड़ा हो जाए, तो वो अपराधी हो जाता है?
  • क्या हर समस्या का जवाब अब पुलिस की कार्रवाई बन गई है?

यह खबर नहीं, लोकतंत्र के माथे पर एक करारा तमाचा है : यह चक्काजाम नहीं था, यह एक कराहती हुई जनता की अंतिम पुकार थी। लेकिन अफसोस कि उसे सुनने के बजाय उसे अपराध बना दिया गया।

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