गरियाबंद

छुरा में ज़मीन माफिया का साम्राज्य : खेत पर खड़ी कॉलोनियां, प्रशासन बना गूंगा-बहरा तमाशबीन!…

गरियाबंद। जिले के छुरा में इन दिनों किसी शांत कस्बे की तरह नहीं, बल्कि भू-माफिया के बिछाए जाल में फंसे उस इलाके की तरह दिखता है, जहां कानून की किताबें बंद हैं और ज़मीन के दलालों का खेल दिन-दहाड़े खेला जा रहा है। खेतों की हरियाली उजड़ चुकी है, और उसकी जगह अवैध कॉलोनियों की पक्की साजिशें उग आई हैं – वो भी प्रशासन की आंखों के सामने!

‘कॉलोनी नहीं, फरेब का जंगल है ये!’…कोसमबुढ़ा, छोटे छुरा, लोहझर, तुमगांव, खरखरा – इन इलाकों में खुलेआम खेतों को काटकर कॉलोनियां बसाई जा रही हैं। न अनुमति, न ले-आउट, न नक्शा, न ज़मीन उपयोग परिवर्तन – फिर भी खुलेआम प्लॉट बिक रहे हैं, रजिस्ट्री हो रही है, और दलाल गाड़ी-बंगला बना रहे हैं। ये धंधा कोई रातोंरात नहीं पनपा, बल्कि सालों की सरकारी चुप्पी और अंदरूनी सांठगांठ की उपज है।

पटवारी से रजिस्ट्री तक – कागजों की कसमों पर बिक रही ज़मीन!…सूत्रों के अनुसार, बिना किसी तकनीकी जांच या ऑन-ग्राउंड वेरिफिकेशन के, पटवारी और तहसील स्तर पर ज़मीन की रजिस्ट्री कराई जा रही है। खेती की भूमि को रिहायशी दिखाकर करोड़ों का खेल खेला जा रहा है। क्या यह सब बिना किसी ऊपरी संरक्षण के हो सकता है? शायद नहीं!

नाम बड़े, खेल खतरनाक – रसूखदारों ने सार्वजनिक ज़मीन तक निगली!…छुरा का एक बड़ा कारोबारी तो और भी आगे निकल गया – आरोप हैं कि उसने न सिर्फ बड़ी मात्रा में अवैध प्लॉटिंग की है, बल्कि जंगल से सटी शासकीय ज़मीन को भी कब्जे में लेकर बाउंड्री बना डाली है। इसका सीधा असर ग्रामीणों पर पड़ा है – ना मवेशियों को चराने की जगह रही, ना लकड़ी लाने का रास्ता।

धोखा भी हाई-प्रोफाइल – कमल विहार के नाम पर छुरा में सौदे!…इंडियन गैस गोदाम के पास हाल ही में रजिस्ट्री हुई ज़मीन की दर 2500 से 3000 रुपये प्रति वर्गफीट तक पहुंच गई है – जो कि राजधानी रायपुर की कमल विहार कॉलोनी की दरों को टक्कर देती है! ये वही ज़मीन है जिसे कुछ महीनों पहले मात्र 8 से 10 लाख में खरीदा गया था। मोटा मुनाफा रसूखदारों की जेब में, और फंसा आम आदमी – रजिस्ट्री कराके भी राहत नहीं!

‘घर’ का सपना बना सरकार और माफिया की साझा ठगी का शिकार!…प्लॉट खरीदने वाले लोग तब टूटते हैं जब घर बनाने की सोचते हैं – तब पता चलता है कि न तो जमीन का नक्शा पास है, न परमिशन। और अगर कोई बिना परमिशन बनाता है, तो नोटिस और जुर्माने का पहाड़ टूट पड़ता है। दलाल इस बीच या तो लापता हो जाते हैं या फोन उठाने बंद कर देते हैं।

प्रशासन की चुप्पी या सहमति? – अब जवाब मांगता है छुरा!…छुरा में यह सिर्फ अवैध प्लॉटिंग नहीं, बल्कि पूरा सिस्टम गिरवी रखा गया लगता है। जनप्रतिनिधि मौन हैं, अधिकारी मूक हैं और ज़मीन का सौदा खुलेआम हो रहा है। सवाल यह नहीं कि यह गोरखधंधा कब शुरू हुआ, असली सवाल यह है – सरकार कब जागेगी?


संपादकीय टिप्पणी:

“यदि छुरा की ज़मीन को ऐसे ही लूटा जाता रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब खेती केवल किताबों में बचेगी और न्याय केवल पोस्टरों में। यह केवल माफिया का नहीं, पूरे सिस्टम का दीमक बन चुका मामला है – और अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो भविष्य में छुरा जैसे इलाकों के नाम सिर्फ घोटालों में गिने जाएंगे।”

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