रायपुर

छत्तीसगढ़ में जमीन की रजिस्ट्री अब पूरी तरह ऑनलाइन, लेकिन ग्रामीणों के सामने नई चुनौतियों का पहाड़…

• माय डीड’ व्यवस्था लागू: डिजिटल सुधार या डिजिटल बहिष्कार?...

रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने पंजीयन प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल और पेपरलेस बनाते हुए 10 जुलाई से पूरे राज्य में ‘माय डीड’ प्रणाली को अनिवार्य कर दिया है। सरकार इसे पारदर्शिता, त्वरित सेवा और भ्रष्टाचार-मुक्ति की दिशा में बड़ा कदम बता रही है। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि यह व्यवस्था प्रदेश के लाखों ग्रामीण और तकनीकी रूप से वंचित नागरिकों के लिए एक नई दीवार खड़ी कर रही है।

सरकार की मंशा साफ है, लेकिन क्या तैयारी भी उतनी ही सशक्त है? – राज्य सरकार ने ‘माय डीड’ को डिजिटल भारत की दिशा में “क्रांतिकारी पहल” बताया है, जिसका उद्देश्य रजिस्ट्री से जुड़ी प्रक्रिया को पारदर्शी, सरल और बिचौलिया-मुक्त बनाना है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बदलाव जनता की सुविधा को ध्यान में रखकर किया गया या केवल व्यवस्था की सुविधा के लिए?

लाभ की बात करें तो :

  • रजिस्ट्री प्रक्रिया अब घर बैठे ऑनलाइन की जा सकती है।
  • दस्तावेजों का सत्यापन तेजी से और पारदर्शी ढंग से होगा।
  • सरकारी कार्यालयों में भीड़ और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी।

❗ लेकिन चुनौतियाँ कहीं बड़ी और गहरी हैं :

  • डिजिटल साक्षरता की कमी :ग्रामीण, आदिवासी और बुजुर्ग वर्ग के अधिकांश लोग कंप्यूटर, मोबाइल, पोर्टल या ऑनलाइन प्रक्रिया से अनजान हैं। उनके लिए यह नई प्रणाली सुविधा नहीं, असमर्थता का बोध बन रही है।
  • तकनीकी अवसंरचना की खामियां :इंटरनेट की धीमी गति, बार-बार क्रैश होता सर्वर और सीमित साइबर कैफे  यह सब आमजन को नई तरह की दौड़-धूप और तनाव दे रहे हैं।
  • दलालों की ‘डिजिटल वापसी’: जहां ज्ञान नहीं है, वहां बाज़ार पनपता है। तकनीकी जानकारी के अभाव में लोग अब ‘सहायकों’ के नाम पर नए बिचौलियों के शिकार हो रहे हैं, जो फॉर्म भरने से लेकर दस्तावेज़ अपलोड करने तक के नाम पर मनमाना शुल्क वसूल रहे हैं
  • त्रुटिपूर्ण प्रविष्टियों का बड़ा खतरा : एक छोटी सी गलती पूरी रजिस्ट्री प्रक्रिया को बाधित कर सकती है। न सुधार की सहज प्रक्रिया है, न सहायता केंद्रों की भरपूर उपलब्धता।

प्रदेश के ये जिले पूरी तरह डिजिटल रजिस्ट्री में शामिल :

बालोद (डल्लीराजहरा), बलौदाबाजार (कसडोल), बलरामपुर (राजपुर), बस्तर (कोण्डागांव), बेमेतरा (साजा), बिलासपुर (मरवाही), दुर्ग (बोरी), गरियाबंद, जांजगीर (अकलतरा), जशपुर (कुनकुरी), कबीरधाम (बोड़ला), कांकेर (भानुप्रतापपुर), कोरबा (पाली), कोरिया (बैकुंठपुर), रायपुर (टिल्दा-नेवरा), राजनांदगांव (मोहला), सुरजपुर (प्रतापपुर), सरगुजा (सीतापुर)।

निर्देश तो दिए गए, लेकिन क्या उन पर अमल हुआ? –

महानिरीक्षक पंजीयन ने एनआईसी पुणे और तकनीकी विशेषज्ञों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सभी पंजीयन कार्यालय इस व्यवस्था को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रशिक्षित और सक्षम हों।
लेकिन अधिकांश जिलों में अब तक कोई जन-जागरूकता अभियान, प्रशिक्षण शिविर या हेल्प डेस्क व्यवस्थित रूप से शुरू नहीं हो पाए हैं।

आखिरकार, सवाल यह नहीं कि डिजिटल क्यों लाया गया…सवाल यह है कि  क्या हमने अपने नागरिकों को डिजिटल होने के लिए तैयार किया?…क्या यह सुधार सबके लिए समान रूप से सुलभ और न्यायसंगत है?या फिर यह उन वर्गों को चुपचाप बाहर कर देने का एक नया माध्यम बन रहा है, जिनकी आवाज़ पहले भी व्यवस्था में कमज़ोर थी?

‘माय डीड’ एक सकारात्मक और दूरदर्शी पहल हो सकती है, यदि इसे समान अवसर, डिजिटल साक्षरता और तकनीकी सुविधा से जोड़ा जाए। अन्यथा यह व्यवस्था सामाजिक असमानता की खाई को और गहरा करने का कारण बन सकती है।

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