छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ : दैनिक घटती घटना संस्थान पर बुलडोजर चला कर क्या क्रूर्णतावादी होने का परिचय दिया सरकार ने?…

◆ राजपत्र बड़ा या फिर कैबिनेट की बैठक में पारित आदेश???..

◆ क्या दैनिक घटती घटना प्रतिष्ठान को तोड़ने के लिए ही 19 जुलाई को रखी गई थी कैबिनेट बैठक???..

◆ जगह खाली करने के साथ-साथ पेड़ पौधों को भी क्षति पहुंचाया गया जिस पौधे को लगाने के लिए एक पेड़ मां के नाम मुहिम चलाई जा रही सरकार द्वारा??…

रायपुर। अम्बिकापुर :  क्या प्रदेश की हिंदूवादी सरकार क्रूर्णतावादी सरकार हो गई थी है और क्या उसका मुख्य उद्देश्य गलत तरीकों से भ्रष्टाचार के रास्ते केवल स्वार्थ सिद्धी मात्र रह गया है यह सवाल अब खड़ा होने लगा है। वहीं क्या यह सरकार बेवजह केवल इसलिए किसी के प्रतिष्ठान को नेस्तनाबूत करने का निर्णय ले सकती है क्योंकि वह सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करने वहीं सरकार के मंत्रियों के इर्द गिर्द रहने वाले भ्रष्ट एवम ऐसे अधिकारियों के खिलाफ वह अभियान चला रहा होता है जिनकी या तो डिग्री फर्जी है या फिर वह फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं, यदि कहा जाए की केवल गलत लोगों साथ ही भ्रष्टाचार के रास्ते नौकरी में आए भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों के लिए ही सरकार केवल सही व्यवहार रखती है ईमानदार और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो हैं उनके खिलाफ ही सरकार क्या षड्यंत्र कर रही है यह भी एक बड़ा सवाल है। जिस तरह दैनिक घटती घटना समाचार पत्र के विरुद्ध द्वेषवश कार्यवाही सरकार ने की वह कार्यवाही कोई हिंदूवादी सरकार की कार्यवाही नहीं कही जा सकती क्योंकि कार्यवाही पीठ पर वार जैसी थी वहीं कार्यवाही जब की गई समाचार पत्र के संपादक के विरुद्ध वह गमगीन अवस्था में थे यदि कहा जाए सूतक काल में थे। वैसे कार्यवाही के संदर्भ में यह भी देखने को मिला की कार्यवाही के लिए सरकार ने अपनी पूरी ताकत लगा दी यहां तक कि कैबिनेट की बैठक भी उन्हे करनी पड़ी जो यह साबित करने काफी है की सरकार प्रदेश की हिंदूवादी सरकार जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध खुद को एक बेहतर सरकार बतलाती है वह भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए निम्न स्तरीय निर्णय लेने भी मजबूर हुई क्योंकि भ्रष्टाचारी एक तरफ एक मंत्री का भतीजा भी है और वहीं उसी मंत्री का एक ओएसडी भी और दोनों ही की नौकरी भी फर्जी है डिग्री फर्जी है एक की नौकरी फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर लगी है।

पीएससी घोटाले में जांच कर कार्यवाही करने वाली वर्तमान सरकार फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र वाले राज्य प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी पर कार्यवाही क्यों नहीं कर पा रही?…:  वैसे पीएससी घोटाले में जांच कर कार्यवाही करने वाली वर्तमान सरकार फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र वाले राज्य प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी पर जो स्वास्थ्य मंत्री का ओएसडी है उस पर कार्यवाही क्यों नहीं कर पा रही है वहीं वह स्वास्थ्य मंत्री के ही उस भतीजे पर कार्यवाही क्यों नहीं कर पा रही है जो फर्जी डिग्री के आधार पर स्वास्थ्य विभाग में नौकरी कर रहा है और कई वर्षों से वह गरीबों को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधा में सेंध लगाकर अपने घर को भर रहा है और अपने बाल बच्चों को भ्रष्टाचार से जुटाए गई संसाधन से सुख सुविधा मुहैया करा रहा है। एक फर्जी डिग्रीधारी भतीजे सहित एक फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी करने वाले ओएसडी के लिए क्या स्वास्थ्य मंत्री और पूरी सरकार इसलिए नतमस्तक है क्योंकि वह उनके लिए भ्रष्टाचार के जरिए संसाधन जुटा रहे हैं इसलिए उनके ऊपर कार्यवाही नही हो रही है यह भी कहना कहीं न कहीं गलत नहीं होगा।

बस जांचा हो जाए :  वैसे बता दें की पीएससी में जो भर्ती घोटाला हुआ वह भी छोटा साबित हो जायेगा यदि एक ओएसडी स्वास्थ्य मंत्री के जिनका दिव्यांग प्रमाण पत्र फर्जी है यह आरोप है इसकी जांच हो जाए वहीं स्वास्थ्य मंत्री के भतीजे की डिग्री की जांच हो जाए और फिर स्वास्थ्य मंत्री के भतीजे के कोरिया जिले के कार्यकाल की राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत की गई भर्ती की जांच की जाए। यदि सही जांच हो गई मात्र,ऐसे सैकड़ों फर्जी डिग्री और अनुभव वाले मिल जाएंगे जो लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं जिन्हे अब स्वास्थ्य मंत्री के भतीजे का पूरा संरक्षण है।

क्या दैनिक घटती घटना को भ्रष्टाचार की खबर प्रकाशित करने से रोकने के लिए कैबिनेट की बैठक में प्रस्ताव पारित कर राजपत्र में प्रकाशित नियम या कहें कानून को ही कुचल दिया गिया?… : वैसे दैनिक घटती घटना इसी भ्रष्टाचार को उजागर करने का काम कर रहा था जो स्वास्थ्य मंत्री और सरकार को नागवार गुजरा और उन्होंने एक राजपत्र में प्रकाशित नियम को शिथिल करने जल्दबाजी में कैबिनेट बैठक आयोजित कर दी और कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव पारित कर राजपत्र में प्रकाशित नियम या कहें कानून को ही कुचल दिया। कहा जाए तो यह एक तरह से आपातकाल जैसा ही कृत्य कहा जा सकता है प्रदेश की हिंदूवादी सरकार का। नियम भी जो बदला गया जो पूर्व सरकार द्वारा बनाया गया नियम था उस नियम अंतर्गत प्रदेश में असंख्य कार्यवाही की जानी चाहिए थी लेकिन केवल एक ही कार्यवाही की गई और उसके बाद सरकार भी चैन से बैठ गई और सरगुजा का जिला प्रशासन भी चैन से बैठ गया, जबकि उन्हे कम से कम सरगुजा में ही अनगिनत कार्यवाही करने की जरूरत थी वहीं जिस जगह पर दैनिक घटती घटना पर कार्यवाही की गई।

क्या दैनिक घटती घटना कार्यालय व संपादक थे जिसके विरुद्ध मात्र कार्यवाही के लिए पूरी सरकार पूरी कैबिनेट को खुद को समाने झोंकना पड़ा?… : वहीं वह अनगिनत कार्यवाही कर सकते थे लेकिन उनका या कहें सरकार का प्रदेश सरकार का लक्ष्य केवल दैनिक घटती घटना कार्यालय था संपादक था जिसके विरुद्ध मात्र कार्यवाही के लिए पूरी सरकार पूरी कैबिनेट को खुद को समाने झोंकना पड़ा और भ्रष्टाचार को बचाने उन्होंने पूरी सरकार ने वह निर्णय लिया जो सरकार की छवि जो हिंदूवादी छवि है उसके विपरीत है वहीं भ्रष्टाचार के विपरीत सरकार काम कर रही है यह भी एक झूठा भ्रम सरकार फैला रही है वह भ्रष्टाचार मामले में केवल उन्हीं के खिलाफ है जो मंत्री विधायक के रिश्तेदार नहीं हैं या उनके खास अधिकारी कर्मचारी नहीं हैं। चढ़ावा चढ़ाने वाले पर कोई कार्यवाही नहीं होगी वह भ्रष्टाचारी नही यह कहना भी गलत नही है जो सूरजपुर के प्रभारी डीपीएम साथ ही स्वास्थ्य मंत्री के ओएसडी के मामले में देखा जा रहा है जिनके लिए पूरी सरकार ढाल बनकर खड़ी है और वह फर्जी सर्टिफिकेट से नौकरी करने के बावजूद सरकार के खास हैं क्योंकि वह भ्रष्टाचार में माहिर हैं और विश्वस्त हैं भ्रष्टाचार मामले में उन्हें इसलिए पिछली सरकार में भी कोई नहीं हटाने प्रयास करता नजर आया न ही इस सरकार में भी कोई नहीं है।

सच्चे पत्रकार व संपादक को नहीं झुका सके तो जिला प्रशासन को इशारा कर दिया बुलडोजर कार्यवाही का…सरगुजा प्रशासन की दिखी घटिया मानसिकता…घटती घटना प्रतिष्ठान को तोड़ने के लिए मोहलत दी एक दिन का : सरगुजा जिला प्रशासन सरकार के दबाव में कितना बेबस था कितनी निम्न स्तरीय उसकी मजबूरी थी उसका कर्म था दैनिक घटती घटना कार्यालय पर कार्यवाही के दौरान जिसे इस बात से समझा जा सकता है की पूरा जिला प्रशासन रातभर तीन चार लोगों के इशारे पर रात्रि जागरण करता रहा और जिनके इशारे का जिला प्रशासन को इंतजार था वह कोई और लोग नहीं थे न ही वह कोई बड़े अधिकारी थे जिला सरगुजा के कलेक्टर से न ही वह खुद मंत्री ही थे। वह कुछ लोग वह लोग थे जो पिता की मृत्यु शोक में गमगीन संपादक के घर पर रातभर उपस्थित थे और वह भी किसी शोक संवेदना के लिए नहीं बल्कि भ्रष्टाचार को छिपाने एक निवेदन के साथ जिसमे एक मंत्री के ओएसडी के नौकरी का मामला था जिसे वह समाचार पत्र में प्रकाशन से रोकना चाहते थे वह भी इसलिए क्योंकि मामला फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी से जुड़ा हुआ था वहीं वह खुद मौजूद था साथ ही उसके कुछ लोग सत्ता के गलियारे के वह प्यादे थे जो हिंदुत्व के नाम पर स्वार्थ की रोटी सेंकने का काम करते हैं साथ ही वह हिंदू विरोध में ही नजर आते हैं साथ ही जहां हिंदुत्व के रक्षार्थ कोई कठिन विषय आता है वह पीठ दिखा जाते हैं। कहा जाए दलाल सत्ता के थे जिनके इशारे का रातभर जिला प्रशासन सरगुजा करता रहा वहीं जब वह लोग एक सच्चे पत्रकार को नहीं झुका सके संपादक को नहीं खरीद सके उन्होंने जिला प्रशासन को इशारा कर दिया और सुबह बुलडोजर कार्यवाही हो गई। वैसे विषय शर्म का है क्योंकि एक ऐसे राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के लिए पूरा जिला प्रशासन रात्रि जागरण करता रहा जिसे जिम्मेदार जिला प्रशासन साथ ही प्रदेश सरकार को जेल भेजना चाहिए क्योंकि वह फर्जी तरीके से नौकरी कर रहा है। वैसे जिला प्रशासन सरगुजा की मजबूरी उनकी कर्तव्यनिष्ठा उस फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वाले अधिकारी के साथ इसलिए भी थी क्योंकि वह एक मंत्री के संरक्षण में है और मंत्री का संरक्षण मात्र उसकी कुल योग्यता है जिसकी जांच और कार्यवाही प्रदेश का न तो कोई विभाग कर सकता न अधिकारी न सरकार ऐसे में सरगुजा जिला प्रशासन की क्या मजाल।

सरगुजा प्रशासन का दोहरा चरित्र दैनिक घटती घटना के प्रतिष्ठान को तोड़ने का मोहलत दिया एक दिन का…वहीं एक और बेदखली का आदेश आया सामने…आदेश तो होता है 2 महीना पहले पर मिलता है दो दिन पहले : वैसे जिस तरह की तत्परता सरगुजा जिला प्रशासन ने एक प्रेस कार्यालय और एक सच्चे संपादक के प्रतिष्ठान को नेस्तनाबूत कर दिखाई वैसी तत्परता अन्य एक भी और नजर नहीं आई और कार्यवाही यह साबित करने वाली साबित हुई की कार्यवाही सत्य के खिलाफ थी भ्रष्ट व्यवस्था को कायम रखने के लिए एक अभियान थी। एक मामला उसके बाद फिर समाने आया है जो प्रवृत्ति में वैसा ही है जैसा दैनिक घटती घटना कार्यालय और संपादक के प्रतिष्ठान को लेकर की गई कार्यवाही जैसी है बस इसमें फर्क इतना है की कार्यवाही में केवल नोटिस बस जारी हुई है और वह भी उसमे तारीख दो माह पूर्व का है और संबंधित को यह नोटिस कब मिला यह तो बाद का विषय है लेकिन संबंधित का घर आज भी जस का तस है कोई बेदखली नहीं हुई। वैसे यह बताना भी जरूरी है की यह भी उसी भूखंड रकबे का भाग है जिस भाग पर ही दैनिक घटती घटना कार्यालय पर कार्यवाही हुई। यदि एक को दो माह का समय मिला तो फिर दैनिक घटती घटना संपादक को मात्र एक दो दिन का ही समय क्यों मिला वहीं तब कार्यवाही हुई जब वह पितृशोक में गमगीन थे। कार्यवाही जिला प्रशासन सरगुजा की किस तरह निम्न स्तरीय थी घिनौनी थी वहीं कार्यवाही में शामिल अधिकारी जिला प्रशासन के साथ ही हर एक कर्मचारी किस तरह इसे न्याय संगत बता सकेगा साथ ही कैसे अपनी ही आंखो से आंखे भले मिला ले किसी ईमानदार से वह आंखे मिला सकेगा यह भी सवाल उठेगा। सरकार हो या जिला प्रशासन कार्यवाही जो उन्होंने एक सच्चे पत्रकार या संपादक पर की उसे वह कभी न तो जायज बता सकेंगे न ही खुद को ईमानदार जो इस कार्यवाही की सबसे बड़ी सच्चाई है।

आखिर प्रशासन के ऊपर किसका दबाव था की दैनिक घटती घटना के संस्थान को खाली कराने नहीं जमींदोज करने पहुंचा जिला प्रशासन?…जिला प्रशासन सरगुजा पर सरकार का दबाव था और यह दबाव किसका था यह प्रश्न जरूर उठता है क्योंकि जिला प्रशासन दैनिक घटती घटना समाचार पत्र साथ ही संपादक का प्रतिष्ठान खाली कराने नहीं पहुंचा बल्कि वह उसे नेस्तनाबूत जमीदोज करने पहुंचा। जिला प्रशासन का हर एक अधिकारी रात भर जागता रहा वहीं भोर से वह अभियान में जुट गया। दबाव का स्तर काफी बड़ा था ईमानदारी को कुचलने सत्य को झुकाने पूरे भ्रष्ट तंत्र का एक एक सिपाही ईमानदारी से जुटा था क्योंकि मामला भ्रष्टाचार को बचाने का था सुख सुविधा अपने परिवार का जुटाने का था जो सत्य को कुचलकर ही मिल सकने वाली चीज है।

जगह खाली करने के साथ-साथ पेड़ पौधों को भी क्षति पहुंचाया गया जिस पौधे को लगाने के लिए एक पेड़ मां के नाम मुहिम चलाई जा रही सरकार द्वारा?? : समाचार पत्र कार्यालय और संपादक के प्रतिष्ठान पर कार्यवाही के दौरान कई वृक्षों को भी नेस्तनाबूत कर दिया गया उखाड़ दिया गया जो परिसर में मौजूद थे। अभी प्रदेश सरकार एक मुहिम भी चला रही है जो मुहिम पर्यावरण को बचाने का मुहिम है और जिसके अंतर्गत सरकार सभी से एक पेड़ अपनी मां के नाम लगाने का आह्वान कर रही है वहीं वही सरकार या उसका जिला प्रशासन एक संपादक के विरुद्ध कार्यवाही द्वेषवश कार्यवाही के लिए उसके प्रतिष्ठान के इर्द गिर्द लगे बड़े जीवित हरे भरे वृक्षों को भी उजाड़ देता है उसे जड़ से उखाड़ देता है । क्या इसे एक वृक्ष मां के नाम अभियान का विरोधी स्वरूप नहीं कहा जा सकता इसे पर्यावरण का विरोधी स्वरूप नहीं कहा जा सकता जिला प्रशासन का एक मां के प्रति भावना स्थापित कर वृक्ष लगाने का आह्वान करने वाले क्या एक व्यक्ति की मां के प्रति आस्था पर किया गया यह प्रहार नही है।

दबाव में थे सरगुजा कलेक्टर विलास भोस्कर संदीपान…जो नियम के विपरीत जाकर संस्थान को पहुंचाया नुकसान? कलेक्टर सरगुजा काफी दबाव में थे यह भी बात सामने आई है। एक इमानदार छवि के रूप में कार्यभार ग्रहण करने वाले ऊर्जावान अधिकारी को भी भ्रष्ट व्यवस्था में सहभागी कैसे बनना पड़ा यह इस कार्यवाही के बाद समझा जा सकता है। देखा जाए तो कलेक्टर सरगुजा की छवि भी इस मामले में न्याय वाली नजर नही आई जिसका असर यह होगा आगामी की आगे भी जायज और सही कार्य वाले संशय से ही देखने मजबूर होंगे।

राजपत्र बड़ा या फिर कैबिनेट की बैठक में पारित आदेश? पूर्व की कांग्रेस सरकार ने एक कानून बनाया और उसे राजपत्र में प्रकाशित कराया वहीं उसी कानून को वर्तमान सरकार ने एक समाचार पत्र कार्यालय पर कार्यवाही के लिए बदल डाला और बदलने के लिए राजपत्र का प्रकाशन नहीं कराया बल्कि एक कैबिनेट बैठक में ही यह आदेश उन्होंने पारित कर दिया।

क्या दैनिक घटती घटना प्रतिष्ठान को तोड़ने के लिए ही 19 जुलाई को रखी गई थी केबिनेट की बैठक ? क्या 19 जुलाई 2024 की छत्तीसगढ़ सरकार की कैबिनेट बैठक मात्र एक समाचार पत्र पर और उसके संपादक के प्रतिष्ठान पर कार्यवाही के लिए आयोजित थी। क्या इसीलिए कैबिनेट बुलाई गई की भ्रष्टाचार के विरुद्ध समाचार लिखने वाले एक समाचार पत्र के संपादक और उसके प्रतिष्ठान पर कार्यवाही की जा सके।

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