घरघोड़ा में ‘खुड़खुड़िआ जुए’ का साम्राज्य, पुलिस की वर्दी पर सवाल, क्या 720 रुपये की जब्ती से होगा अपराध का खात्मा?…

रायगढ़ | जिले के घरघोड़ा थाना क्षेत्र में ‘खुड़खुड़िआ जुआ’ अब केवल एक अवैध गतिविधि नहीं, बल्कि संगठित अपराध का रूप ले चुका है। मोबाइल, प्लास्टिक की गोटियाँ और स्थानीय दलालों के माध्यम से संचालित यह जुआ गांव-गांव में तेजी से फैल रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस पूरे अपराध के तंत्र के सामने घरघोड़ा पुलिस पूरी तरह से मूकदर्शक बनी हुई है।
हाल ही में घरघोड़ा पुलिस ने पतरापाली गांव में ‘खुड़खुड़िआ जुआ’ खेलने की सूचना पर “कार्रवाई” की। पुलिस के अनुसार, टीम के पहुँचते ही अधिकांश जुआरी फरार हो गए। केवल ललित राठिया (45 वर्ष), निवासी कंचनपुर, को मौके से पकड़ा गया। पुलिस ने उसके पास से छह प्लास्टिक की खुड़खुड़िया गोटियाँ और ₹720 की नगदी जब्त की। आरोपी के विरुद्ध छत्तीसगढ़ जुआ प्रतिषेध अधिनियम 2022 की धारा 3(2) के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया।
पुलिस की यह कार्रवाई न सिर्फ सवालों के घेरे में है, बल्कि जनता की आँखों में धूल झोंकने की नाकाम कोशिश प्रतीत होती है। जिन लोगों पर महीनों से जुआ संचालित करने के आरोप लगते रहे हैं, वे मौके से फरार हो गए। क्या उन्हें कार्रवाई की पूर्व सूचना मिली थी? क्या यह सुनियोजित ‘ड्रामा’ था, ताकि पुलिस अपनी निष्क्रियता पर पर्दा डाल सके?
स्थानीय सूत्रों का दावा है कि पतरापाली सहित घरघोड़ा क्षेत्र के कई गांवों में हर शाम यह जुआ बिना किसी भय के खुलेआम संचालित होता है। ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस को सब कुछ पता होते हुए भी वह कार्रवाई नहीं करती, क्योंकि हर स्तर पर ‘समझौता’ तय है। हर गांव में स्थानीय एजेंट, हर दलाल के पीछे कोई न कोई ‘सुरक्षा चक्र’, और हर थाना स्तर पर ‘महीना’ तय यही इस अपराध तंत्र का मूल ढांचा है।
इस अवैध गतिविधि ने सामाजिक ताने-बाने को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। युवा पीढ़ी तेजी से जुए की लत में फँसती जा रही है। कई परिवार आर्थिक तंगी में डूब चुके हैं, घरों में कलह बढ़ रही है, महिलाएं गहने बेचने को मजबूर हैं, और स्कूल छोड़कर बच्चे जुए की दुनिया में खिंचते चले जा रहे हैं।
इस पूरी स्थिति पर जिला प्रशासन की चुप्पी और पुलिस अधीक्षक की निष्क्रियता भी कठघरे में है। जब यह सर्वविदित है कि खुड़खुड़िआ जुआ संगठित रूप से फैला हुआ है, तो अब तक इसका बड़ा खुलासा और गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? क्या प्रशासन भी इस अपराध में मौन समर्थन दे रहा है?
अब सवाल उठता है: क्या केवल ₹720 की जब्ती से पुलिस अपनी जिम्मेदारी निभा लेगी? क्या एक व्यक्ति की गिरफ्तारी से पूरे तंत्र की जड़ों पर प्रहार हो जाएगा? या यह एक सुनियोजित प्रयास था जनता और मीडिया को भ्रमित करने के लिए?
घरघोड़ा पुलिस की यह तथाकथित कार्रवाई न सिर्फ नाकाफी है, बल्कि व्यवस्था की सड़ांध को उजागर करने के लिए पर्याप्त है। अगर अब भी पूरे जुए के नेटवर्क पर कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह अवैध खेल केवल पैसे नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी निगल जाएगा।