कोरबा राख घोटाला : नदी को ‘नाला’ बताकर नियमों की कब्रगाह बना दी, कंपनियों-अधिकारियों की मिलीभगत से खुला भ्रष्टाचार का मुंह…

कोरबा। जिले से एक ऐसा पर्यावरणीय घोटाला सामने आया है, जिसने न सिर्फ नियमों की धज्जियां उड़ा दीं, बल्कि सरकारी तंत्र और निजी कंपनियों की गहरी साठगांठ को भी उजागर कर दिया है। यहां एक बंद पड़ी पत्थर खदान में फ्लाई ऐश (राख) डंप करने के लिए तान नदी को कागज़ों में ‘नाला’ घोषित कर दिया गया, ताकि पर्यावरण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों को दरकिनार किया जा सके।
नदी को नाला बना दिया गया : यह मामला सुनने में जितना चौंकाने वाला है, उसके पीछे की साजिश उतनी ही संगठित और खतरनाक है। मेसर्स एसीबी इंडिया लिमिटेड ने 24 अप्रैल 2025 को खदान के पास बहने वाली तान नदी को ‘नाला’ घोषित कर डाला, जबकि सरकारी रिकॉर्ड और पुराने दस्तावेज साफ बताते हैं कि यह नदी महानदी की सहायक है और खदान से महज 165 मीटर की दूरी पर बहती है।
पर्यावरण मंत्रालय की 28 अगस्त 2019 की अधिसूचना में स्पष्ट प्रावधान है कि कोई भी फ्लाई ऐश डंपिंग साइट नदी या जल स्रोत से 500 मीटर के भीतर नहीं होनी चाहिए। लेकिन इस नियम को कूड़ेदान में फेंक दिया गया।
कैसे हुआ घोटाले का ताना-बाना तैयार? – यह पूरा घोटाला नवंबर 2020 से शुरू होता है, जब मेसर्स डीबीएल को कोनकोना खदान में खनन की अनुमति मिली थी। शर्त यह थी कि खनन के बाद उस गड्ढे को जलाशय के रूप में विकसित किया जाएगा। लेकिन खेल तब शुरू हुआ जब खदान बंद हो गई और कंपनियों की नजर उस खाली गड्ढे पर पड़ी — उसे राख से भरने का षड्यंत्र रचा गया।
सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से चली ‘फर्जी रिपोर्टिंग’ की कलम : सबसे गंभीर पहलू यह है कि छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के क्षेत्रीय कार्यालय ने 6 मई 2025 को जानबूझकर झूठी निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की, जिसमें यह नहीं बताया गया कि तान नदी खदान से महज 100–150 मीटर की दूरी पर है। इसी फर्जी रिपोर्ट के दम पर 8 मई को मेसर्स एसीबी इंडिया लिमिटेड, बाल्को और मारुति क्लीन कोल एंड पावर लिमिटेड को राख डंपिंग की अनुमति दे दी गई।
यह केवल पर्यावरणीय उल्लंघन नहीं, बल्कि सरकारी मशीनरी का आपराधिक दुरुपयोग और सार्वजनिक संसाधनों के प्रति घोर लापरवाही है।
शिकायत के बाद उखड़ने लगी मिट्टी : इस घोटाले का भांडा 23 जून 2025 को तब फूटा, जब CPGRAMS (केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण प्रणाली) में शिकायतकर्ता गोविंद शर्मा ने विस्तृत शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद 2 जुलाई को कोरबा कलेक्टर और खनन विभाग तक मामला पहुंचा, और 8 जुलाई को यह पर्यावरण संरक्षण मंडल व खनिज सचिव तक भी गया।
शिकायत में यह भी कहा गया है कि इस राख डंपिंग ने जलाशय के भविष्य को ही निगल लिया है। यह स्वीकृत खनन योजना और पर्यावरणीय नियमों दोनों का खुला उल्लंघन है।
क्या होगा दोषियों का? गोविंद शर्मा ने मांग की है कि:
- राख डंपिंग को तत्काल रोका जाए,
- जलाशय को पुनर्स्थापित किया जाए,
- और दोषी कंपनियों व अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए।
उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) और हाईकोर्ट तक ले जाया जाएगा।
प्रश्न उठते हैं – और बहुत गंभीर हैं :
- क्या पर्यावरण मंडल पूरी तरह कंपनियों की जेब में है?
- क्या नदी को ‘नाला’ बता देने भर से कानून बदल जाते हैं?
- क्या अब सरकारी निरीक्षण रिपोर्टें सच्चाई के बजाय पैसा देखकर लिखी जाएंगी?
अब जनता को उठानी होगी आवाज़ : यह घोटाला सिर्फ एक खदान की कहानी नहीं है, यह उस सिस्टम की पोल खोलता है जो मुनाफे के लिए प्रकृति की लाश बिछा देने में भी नहीं हिचकता। सवाल है कि क्या इस बार भी कार्रवाई सिर्फ कागज़ों तक सिमटेगी, या दोषियों की गर्दन तक कानून पहुंचेगा?
कोरबा के जंगलों, नदियों और आदिवासी भूभागों को राख में बदलने वालों को अब बख्शा नहीं जाना चाहिए।