कुंजारा बना ‘शराबग्राम’! खेतों में अब फसल नहीं, बोतलें उग रहीं हैं, ग्रामीणों की हुंकार : अगला आंदोलन बोतलों के खिलाफ!…

लैलूंगा/कुंजारा | विशेष रिपोर्ट। छत्तीसगढ़ के लैलूंगा विकासखंड का शांत, हराभरा और श्रमशील गांव कुंजारा आज शराब माफियाओं और प्रशासनिक लापरवाही की भेट चढ़ चुका है। जहां कभी खेतों में धान की बालियाँ लहलहाती थीं, आज वहां शराबियों की टोलियाँ झूमती मिलती हैं। गांव की गली अब ‘शराब गली’, ‘नशा पर्यटन स्थल’ और ‘बोतल पथ’ के नाम से कुख्यात हो चुकी है।
‘खेत’ नहीं, अब ‘खाली बोतलों का म्यूज़ियम’ : गांव के खेत अब उपज नहीं, उजाड़ के प्रतीक बन गए हैं। जहां एक समय में हल और बैलों की जोड़ी चलती थी, आज वहां शराब की टूटी बोतलों, प्लास्टिक के गिलास, मांस की हड्डियों और गंदगी का अंबार दिखाई देता है।
“अब खेती करने से पहले बीज नहीं, JCB मंगवाते हैं – ताकि बोतलों और हड्डियों की सफाई हो सके।” – एक स्थानीय किसान की पीड़ा।
महिलाएं घरों में कैद, रास्तों पर डर का साया : गांव की महिलाएं अब खेत में नहीं जातीं। बच्चे खेलने बाहर नहीं निकलते। बुजुर्गों ने अपने चबूतरे छोड़ दिए हैं।
“दिन हो या रात, हर कोने पर नशे में धुत्त लोग पड़े मिलते हैं। कोई झाड़ियों में लोट रहा है, कोई खेत में उल्टी कर रहा है। चप्पल पहनकर चलना भी जोखिम है।” – ग्रामीण महिला की व्यथा।
दुकान खुलते ही ‘ओपन बार’ की घोषणा : जैसे ही पास की शराब दुकान खुलती है, पूरा इलाका एक अवैध बार में तब्दील हो जाता है। सरकारी ज़मीनें, स्कूल के आसपास के क्षेत्र, पंचायत भवन की बाउंड्री सबकुछ दारूबाजों के अड्डे में बदल चुका है।
प्रशासनिक चुप्पी ने इनकी हिम्मत और बढ़ा दी है।
ग्रामीणों की दो टूक मांग : या अहाता दो, या दुकान हटाओ!
गांव वालों ने पंचायत स्तर पर प्रस्ताव पारित किया है:
1. या तो शराबियों को एक सीमित, बाउंड्री वॉल युक्त अहाता दिया जाए।
2. या फिर शराब दुकान को गांव की सीमा से बाहर, जंगल के किसी कोने में विस्थापित किया जाए।
युवाओं की चेतावनी : अब ‘शराब से नहीं, शराबियों से लड़ाई’!गांव के जागरूक युवाओं ने अब मोर्चा संभाल लिया है। यदि 15 दिन में समाधान नहीं हुआ, तो गांव में ‘दूसरा चंपारण आंदोलन’ छेड़ने की घोषणा कर दी गई है – इस बार शराब के नहीं, बल्कि ‘शराबियों की अराजकता’ के खिलाफ।
नारा भी तैयार है:
“आओ कुंजारा, पीओ खुल के – लेकिन बोतल खेत में मत फेंको!”
प्रशासन मूक, पुलिस ग़ायब – कौन सुनेगा कुंजारा की पुकार?
हालात दिन पर दिन बदतर होते जा रहे हैं। गांव वालों की दर्जनों शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं। न पुलिस की गश्त, न आबकारी विभाग की उपस्थिति।
“क्या कुंजारा के हिस्से अब सिर्फ बोतलें, हड्डियाँ और डर ही बचा है?” – ग्रामीणों का सवाल।
अब फैसला प्रशासन के पाले में है :क्या कुंजारा फिर से हरियाली, खुशबू और खेती का प्रतीक बनेगा? या बोतलों और लापरवाही की कब्रगाह?
नोट: यह रिपोर्ट गांव की जनता, महिला समूहों, कृषकों और पंचायत प्रतिनिधियों से प्रत्यक्ष बातचीत, स्थल निरीक्षण और दस्तावेज़ी साक्ष्यों पर आधारित है। प्रशासनिक पक्ष हेतु प्रतिक्रिया का इंतजार है।