कुंजारा की ‘शिक्षा नगरी’ : जंगल में मंगल, सरकारी ज़मीन पर प्राइवेट स्वर्ग!…
• राजस्व रिकॉर्ड बोला ‘मैं जंगल हूं...’ज़मीन बोली ‘मैं कॉलेज हूं’ और प्रशासन बोला ‘मैं सो रहा हूं’...

रायगढ़। जिले के लैलूंगा तहसील अंतर्गत कुंजारा गांव अब भूगोल नहीं, ‘भू-कब्जोल’ पढ़ा रहा है।
यहां सरकार की ज़मीन पर “ज्ञान” की खेती हो रही है बस बीज की जगह कब्ज़ा है, और फसल की जगह फीस।
जंगल मद की ज़मीन पर कॉलेज बन गया — और शासन को भनक तक नहीं! शायद प्रशासन अब Google Maps से काम चला रहा है — वहां तो आज भी “हरियाली” दिख रही है।
हलवाई बना ‘शिक्षा सम्राट’ — मिठाई छोड़, मास्टर बन गया!
नाम है आशीष सिदार। कभी गुलाबजामुन बनाते थे, आज शासकीय ज़मीन पर भवन बना बैठे हैं!
टीनशेड नहीं साहब — पूरा का पूरा कॉलेज!
कोचिंग सेंटर से लेकर एडमिशन काउंटर तक, हर चीज़ मौजूद है।
बस कानूनी कागज नहीं है।
(लेकिन कौन पूछता है कागज जब जेब में ‘सिस्टम का साइलेंस’ हो?)
‘जंगल मद’ की ज़मीन, अब ‘डिग्री मद’ की दुकान : खसरा नंबर 243/1 — यानी ‘शासन की शान’।
रकबा 4.327 हेक्टेयर — मतलब ‘भू-माफिया का मैदान’।
जिसका टुकड़ा-भर 0.202 हेक्टेयर अभी-अभी ‘ज्ञानमंदिर’ बन चुका है।
कोई कहे तो पूछिए –
“भाइयों-बहनों, जंगल में पढ़ाई कब से शुरू हो गई?”
उत्तर मिलेगा —
“जब अफसर कुंभकरण बने और कब्जे वालों को वरदान मिले!”
कानून? ओह, वो तो ड्राइंगरूम में टंगा हुआ एक फ्रेम है!
राजस्व संहिता की धारा 188, 251, 257…
ये सब अब ‘मेमोरी लॉस विभाग’ के हवाले हैं।
शायद अफसर भूल गए कि जंगल की ज़मीन किसी की ससुराल नहीं होती!
और मज़ेदार बात तो ये –
जब आम आदिवासी झोपड़ी डालता है, तो प्रशासन हेलिकॉप्टर से नोटिस गिराता है।
लेकिन जब रसूखदार कॉलेज बना दे — तो “जांच चल रही है” वाली ऑडियो टेप चालू हो जाती है।
तहसीलदार बोले — ‘शिकायत आई है, जांच करेंगे’
वाह!
जिस दिन उस इमारत की छत से छात्रों की डिग्री उड़ती मिलेगी,
शायद उस दिन अफसर साहब आंखें खोलेंगे।
(या तब तक रिटायरमेंट के फॉर्म भर चुके होंगे?)
जनता बोली — अब अगर शासन न जागा, तो ‘बोलो सरकार’ अभियान चालू!…
ग्रामीणों ने दो टूक कहा —
“जब सिस्टम को नींद प्यारी है, तो हम सड़कों पर उतरकर उसका अलार्म बनेंगे!”
ये महज़ एक ज़मीन का मामला नहीं,
बल्कि प्रशासनिक रीढ़ की खोज अभियान है।
कुंजारा में शिक्षा नहीं, ‘शासन की शव यात्रा’ निकल रही है!
शासकीय ज़मीन पर खड़ा कॉलेज –
कोई विकास की गाथा नहीं,
बल्कि उस भू-भस्मासुर की कहानी है,
जो कागज चबाता है, नक्शा निगलता है, और कानून की पीठ पर जूते मारता है।
🪧 “कुंजारा का नया पाठ्यक्रम –
- भू-कब्ज़ा 101
- अफसरों को कैसे सुलाना है
- और जांच का खेल कैसे खेलना है”