“कब्जा, जातिगत गाली-गलौच और मठ का विध्वंस ; छुरा की घटना ने हिला दिया न्याय का विश्वास”…

गरियाबंद। जिले के ग्राम छुरा में एक अत्यंत गंभीर एवं संवेदनशील घटना सामने आई है, जहाँ एक 70 वर्षीय दलित महिला की पुश्तैनी भूमि पर बलपूर्वक कब्जा करते हुए उनके धार्मिक मठ को ध्वस्त कर दिया गया। इस कृत्य में न केवल कानून की अवहेलना हुई, बल्कि धार्मिक भावनाओं, सामाजिक मर्यादा और महिला सम्मान को भी गहरी ठेस पहुँची है।
पीड़िता ओगबाई बघेल, पत्नी स्व. श्री सुंदर सिंह बघेल, निवासी ग्राम छुरा, तहसील छुरा, जिला गरियाबंद (छ.ग.) ने बताया कि 7 अप्रैल को दोपहर लगभग 4 बजे, संतोष सारडा ने पटवारी की उपस्थिति में उनकी भूमि ख.नं. 552 पर अतिक्रमण करते हुए, वहाँ स्थित पारिवारिक मठ को गिरा दिया। यह मठ उनके पूर्वजों, दिवंगत पति और पुत्र की स्मृति से जुड़ा हुआ था, जिसकी पूजा-अर्चना दशकों से की जा रही थी।
जातीय अपमान और धमकी की सीमाएं पार : पीड़िता के अनुसार, इस पूरी घटना के दौरान उन्हें एवं उनकी बेटी को जातीय अपशब्द कहते हुए धमकाया गया। संतोष सारडा ने खुलेआम कहा :“तुम गांड़ा जाति के लोग मेरा क्या कर लोगे? तुम्हारी औकात नहीं है। मैं सबको खरीद सकता हूँ।” इतना ही नहीं, पीड़िता की नाबालिग बेटी को भी अपमानित किया गया और पूरे परिवार के साथ दुव्यवहार किया गया। यह न केवल मानवाधिकार का उल्लंघन है, बल्कि महिला सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी चिंताजनक है।
प्रशासनिक बयान और लापरवाही : तहसीलदार द्वारा स्पष्ट किया गया कि “हमने केवल कब्जा दिलाने का आदेश दिया था, मठ को तोड़ने का कोई आदेश नहीं था।”
अब सवाल यह है – यदि मठ को तोड़ने का आदेश नहीं था, तो पटवारी की उपस्थिति में यह कार्रवाई कैसे हुई? क्या यह स्थानीय दबंगों और प्रशासन के बीच मिलीभगत का संकेत नहीं है?
न्याय प्रक्रिया की अनदेखी : पीड़िता का दावा है कि वर्ष 2012-13 में भूमि पर आदेश उनके पक्ष में दिया गया था, किंतु अब तक उस आदेश की प्रति नहीं दी गई। नोटिस भी 6 अप्रैल को देर शाम दिया गया, जबकि 7 अप्रैल को उनके घर विवाह समारोह था। समय माँगने के बावजूद, अगली सुबह उनकी अनुपस्थिति में पूरी कार्यवाही कर दी गई।
पीड़िता की प्रमुख मांगें:
- दोषियों पर एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम, धार्मिक स्थल विध्वंस, महिलाओं एवं बच्चों के साथ दुर्व्यवहार जैसे गंभीर अपराधों के तहत एफआईआर दर्ज की जाए।
- मठ का पुनर्निर्माण प्रशासन की देखरेख में कराया जाए।
- घटना की न्यायिक जांच कराकर दोषी अधिकारियों और दबंगों पर कड़ी कार्यवाही सुनिश्चित की जाए।
यह घटना केवल भूमि विवाद नहीं, एक दलित महिला की गरिमा, आस्था और सामाजिक प्रतिष्ठा पर गहरा हमला है। यदि इसमें कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह लोकतंत्र, सामाजिक समरसता और संवैधानिक अधिकारों के लिए एक काला अध्याय बन जाएगा।