रायगढ़

“ऊपर तक सेटिंग है साहब!” – झरन पंचायत में नरेगा भ्रष्टाचार की खुली स्वीकारोक्ति, अफसर अब भी मौन क्यों?…

रायगढ़। जिले के लैलूंगा विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत झरन में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के तहत हो रहे कार्यों में गंभीर भ्रष्टाचार की शिकायत सामने आई है। लेकिन इस बार मामला केवल आरोपों तक सीमित नहीं है—बल्कि स्वयं रोजगार सहायक द्वारा कथित रूप से भ्रष्टाचार को “सिस्टम का हिस्सा” बताना बेहद चौंकाने वाला और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गहरा आघात है।

“बिना पैसे ऊपर काम नहीं होता… मैंने सबको सेट कर लिया है” – रोजगार सहायक का कथित बयान : ग्रामीणों द्वारा की गई शिकायत के अनुसार, जब सचिव से नरेगा में भ्रष्टाचार को लेकर सवाल पूछा गया, तो उसने बेहिचक कहा:

“नरेगा में काम बिना पैसे दिए नहीं होता, ऊपर तक सबको देना पड़ता है। मैंने सब सेट कर लिया है। तुम लोग बताओ कितना चाहिए?”

यह कथन यदि सत्य है, तो यह न केवल प्रशासनिक तंत्र की गंभीर विफलता है, बल्कि एक ‘भ्रष्ट व्यवस्था की स्वीकारोक्ति’ है—जो एक लोक सेवक के मुख से आना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

जांच या महज खानापूर्ति : शिकायत के बाद की गई तथाकथित जांच प्रक्रिया पर भी ग्रामीणों ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि रोजगार सहायक के “ऊपर तक सेटिंग” के दावे के बाद जिस प्रकार से जांच को धीमा और निष्क्रिय किया गया, उससे लगता है कि प्रभावशाली अधिकारियों को ‘प्रभावित’ कर लिया गया है।

लैलूंगा के पटवारी पर त्वरित निलंबन, फिर यहां मौन क्यों :याद दिलाना जरूरी है कि लैलूंगा क्षेत्र में हाल ही में एक पटवारी के भ्रष्टाचार का मामला सामने आते ही प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई कर उसे निलंबित कर दिया। फिर सवाल उठता है कि:

  • क्या झरन के रोजगार सहायक को भी उसी पैमाने पर जांच और दंड का सामना करना पड़ेगा?
  • या फिर कथित ‘ऊपर तक सेटिंग’ का दावा सच साबित हो जाएगा?

नरेगा : रोजगार का अधिकार या रिश्वत की लाचारी – नरेगा जैसी योजना जो ग्रामीणों को सम्मानपूर्वक आजीविका प्रदान करने के लिए बनी थी, अगर उसमें भी भ्रष्टाचार खुलकर स्वीकार किया जाने लगे तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर संकट का संकेत है। इससे न केवल लाभार्थी वंचित होंगे, बल्कि जनविश्वास भी टूटेगा।

अब जरूरत है : निष्पक्ष जांच और सख्त कार्रवाई की – ग्रामीणों की मांग है कि :

  • रोजगार सहायक के तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए।
  • उनके कथित बयान की ऑडियो या वीडियो जांच की जाए।
  • “ऊपर तक सेटिंग” वाले दावे की उच्चस्तरीय जांच हो, ताकि असली दोषी बेनकाब हो सकें।

पत्रकारिता से अपील : अब चुप्पी नहीं, सच की आवाज़ उठाइए – इस मामले में पत्रकारिता के चौथे स्तंभ से अपेक्षा की जाती है कि वह झरन पंचायत में भ्रष्टाचार के इस मॉडल को उजागर करे। ग्राउंड रिपोर्टिंग, स्वतंत्र पड़ताल और सच्ची खबरों के माध्यम से लोकतंत्र के प्रति अपनी जवाबदेही निभाए।

अब यह देखना शेष है कि प्रशासन इस भ्रष्टाचार की स्वीकारोक्ति को कितना गंभीरता से लेता है या फिर एक और शिकायत “फाइलों की कब्रगाह” में दफन कर दी जाएगी।

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