आरती यादव ने फांसी नहीं लगाई, उसे लटकाया गया- एक बर्बर, पितृसत्तात्मक और संवेदनहीन सिस्टम ने…!

दुर्ग, छत्तीसगढ़। 15 मई को जब आरती यादव ने अपने घर की छत से फांसी का फंदा लगाया, उस वक्त उसने सिर्फ अपनी ज़िंदगी नहीं खत्म की उसने पूरे स्वास्थ्य महकमे की क्रूरता, संवेदनहीनता और महिला कर्मियों के प्रति गहरी नफ़रत को बेनक़ाब कर दिया। आरती की आत्महत्या नहीं हुई है, यह एक संगठित संस्थागत हत्या है और इस हत्या के आरोपी हैं छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग के अफसर, नीतिगत पंगुता, और राज्य सरकार की मौन सहमति।
संविदा का मतलब क्या , संवेदना का गला घोंट देना? : आरती यादव, दुर्ग के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (आयुष्मान आरोग्य मंदिर) में CHO थीं। एक संविदा कर्मचारी थीं यानी सरकार के लिए वो एक ‘डिस्पोजेबल इंसान’ थीं। एक माह पहले उनके पति की सड़क दुर्घटना में मौत हुई। उस सदमे से वह उबर भी नहीं पाईं थीं कि विभागीय अफसरों ने उन्हें काम पर लौटने का फरमान सुना दिया।
छुट्टी की अपील ठुकरा दी गई, अनुपस्थिति पर वेतन काटने की धमकी, खराब C.R. की चेतावनी और अंत में मौत।
आरती अकेली नहीं मरीं, उनके साथ मरी है सरकार की नैतिकता :
- 3 साल में 5 महिला CHO ने आत्महत्या की।
- 2 साल में 3 महिला CHO की हत्या।
- 1 महिला CHO के साथ सामूहिक बलात्कार।
- 15 महिला CHO के साथ छेड़छाड़, मारपीट, जान से मारने की धमकी।
- 3 सड़क हादसों में मौत, मुख्यालय आवासीय सुविधा के अभाव में।
- 3 दर्जन से ज्यादा महिला CHO ने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि जीना दूभर हो गया था।
क्या यह लोकतंत्र है? या संविदा की आड़ में चल रहा ‘अदृश्य गुलामी कानून’?
“काम करो, रो मत : मर जाओ, मगर बोलो मत”: यही है राज्य का संदेश? : सरकार कहती है बेटी बचाओ, महिला सशक्तिकरण लेकिन जब एक महिला अधिकारी बार-बार गुहार लगाती है, तब उसकी आवाज़ को “अनुशासनहीनता” में तब्दील कर दिया जाता है। जब वह खुद को फांसी पर लटकाती है, तब शासन कहता है “जांच होगी”। लेकिन सवाल ये है: क्या जांच में ज़िंदा हो जाएगी आरती? क्या दोषी अफसरों को सिर्फ पद से हटाना पर्याप्त है? क्या यह हत्या नहीं है?
आरती की मौत के गुनहगार कौन हैं?
- वो अफसर जिन्होंने छुट्टी देने से इनकार किया।
- वो अधिकारी जिन्होंने वेतन काटने और C.R. बिगाड़ने की धमकी दी।
- वो शासन-प्रशासन जिसने संविदा कर्मियों को ‘फैक्ट्री मशीन’ समझा।
- और वो सरकार जो सब जानकर भी चुप रही।
इन सबका नाम एफआईआर में होना चाहिए। यह “असिस्टेड सुसाइड” नहीं, “इंस्टीट्यूशनल मर्डर” है।
सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी संघ और एनएचएम कर्मचारी संघ का कहना है कि :
- यह मौत नहीं, सरकारी क्रूरता का परिणाम है।
- मानसिक उत्पीड़न, यौन शोषण और कार्यभार के नाम पर प्रताड़ना की घटनाएं बेतहाशा बढ़ी हैं।
- राज्य में 3500 से अधिक CHO आज असुरक्षित हैं, डरे हुए हैं।
- सरकार ने बार-बार पत्राचार, ज्ञापन, और आंकड़े दिए जाने के बावजूद आंखें मूंद रखी हैं।
संघ ने साफ कर दिया है अब आंदोलन होगा, राज्यभर में उग्र प्रदर्शन होंगे, और इस बार कोई चुप नहीं बैठेगा।
महिला कर्मियों की सुरक्षा नहीं, तो स्वास्थ्य मिशन बंद करो! सरकार से मांग है :
- सभी संविदा CHO को नियमित किया जाए।
- स्थानांतरण नीति लागू की जाए ताकि महिलाएं अपनों के पास काम कर सकें।
- मानसिक स्वास्थ्य सहायता सेल की स्थापना हो।
- महिला सुरक्षा कानून के तहत विभागीय अधिकारियों पर FIR हो।
- सामूहिक बलात्कार, हत्या, आत्महत्या जैसे मामलों में विशेष जांच दल गठित हो।
आरती की मौत पर चुप रहना अपराध है : हर पत्रकार, हर जनप्रतिनिधि, हर नागरिक को यह तय करना होगा , क्या हम संविदा की आड़ में रोज हो रही मौतों को ‘ड्यूटी’ का हिस्सा मान लेंगे? या अब सवाल पूछेंगे?
आरती की मौत एक आईना है, जिसमें पूरा तंत्र नंगा खड़ा है।
यह आवाज़ उठेगी… तो कोई अगली आरती नहीं मरेगी।
यह चुप रही… तो अगली बार कोई कंधे पर आपके घर से उठ सकता है।