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आचमन के लायक नहीं गंगा; NGT की रिपोर्ट ने बढ़ाई साधू संतों की चिंता, कुंभ से पहले गंगाजल को शुद्ध और निर्मल बनाने की मांग…

एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में सीवेज के कारण गंगा का पानी पीने और आचमन के योग्य नहीं रह गया है। ट्रिब्यूनल ने राज्य के मुख्य सचिव को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है जिसमें विभिन्न जिलों में प्रत्येक नाले सीवेज और सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) के बारे में जानकारी देनी होगी।

प्रयागराज। महाकुंभ 2025 शुरू होने में अब कुछ ही हफ्ते बचें हैं लेकिन इससे पहले गंगा के पानी को लेकर आई एनजीटी की रिपोर्ट ने साधु संतों की चिंता को बढ़ा दिया है। संतों ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि संगमनगरी में गंगा आचमन के भी योग्य नहीं है। एनजीटी ने अपनी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश में गंगा प्रदूषण पर चिंता जताते हुए बताया कि, संगम नगरी सहित गंगा किनारे 16 शहरों का सीवेज नालों के जरिए सीधे गंगा में गिर रहा है और इससे जल की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। एनजीटी ने मुख्य सचिव से 4 सप्ताह में हलफनामा दाखिल कर प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के विवरण सहित नालो को गंगा में गिरने से रोकने के संबंध में सरकार से कार्य योजना की जानकारी मांगी है। अगली सुनवाई महाकुंभ के समय 20 जनवरी 2025 को होगी।

वहीं रिपोर्ट के सामने आते ही संतों का कहना है कि, महाकुंभ इतना बड़ा आयोजन है जहां दूरदराज से लाखों की संख्या में साधु संत आस्था की डुबकी लगाने और एक महीना रहकर तप करने आते हैं। ऐसे में गंगा की गुणवत्ता में गिरावट चिंता का विषय है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि, इस पर समय पर कार्य योजना बनाकर समय रहते ठीक किया जाए। जिससे किसी के आस्था को ठेस न पहुंचे।

बता दें की राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने सीपीसीबी की रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि प्रयागराज नगर निगम क्षेत्र में 468.28 एमएलडी सीवेज उत्सर्जित होता है। इसमें 394.48 एमएलडी शोधित होता है. एसटीपी की शोधन क्षमता केवल 340 एमएलडी है।

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