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अधूरा न्याय : जल रही है संघर्ष की मशाल! सियालदह कोर्ट के फैसले पर उठे गंभीर सवाल, अभया आंदोलन ने की निष्पक्ष जांच की मांग…

कोलकाता। आरजी कर अस्पताल में डॉक्टर अभया (काल्पनिक नाम) के साथ हुई नृशंस घटना को लेकर सियालदह कोर्ट ने संजय रॉय को हत्या और बलात्कार का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। लेकिन इस फैसले के बाद राज्य प्रशासन, कोलकाता पुलिस और सीबीआई की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। अभया आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं और आम जनता का कहना है कि यह फैसला अधूरा है और असली अपराधियों को बचाने की साजिश की जा रही है। इस मामले में न्याय की उम्मीद रखने वाले लोग अब और भी ज्यादा आक्रोशित हो गए हैं, क्योंकि कई अहम सवाल अब भी अनुत्तरित हैं।

अनुत्तरित सवाल: आखिर किसे बचाने की कोशिश हो रही है? इस मामले की जांच और सुनवाई के दौरान कई ऐसे तथ्य सामने आए, जिन्होंने पुलिस, प्रशासन और सीबीआई की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए।

  1. परिवार को शव के पास जाने से क्यों रोका गया? : घटना के बाद पीड़ित के माता-पिता को अस्पताल में तीन घंटे तक इंतजार कराया गया। उन्हें अपने ही बच्चे के शव तक जाने की अनुमति नहीं दी गई, जबकि उस दौरान अस्पताल के सेमिनार हॉल में स्वास्थ्य सिंडिकेट के सदस्य खुलेआम घूम रहे थे।
  2. रातोंरात पोस्टमार्टम क्यों किया गया? : सामान्य नियमों को ताक पर रखकर, प्रशासन ने रातोंरात पोस्टमार्टम करवाया और जल्दबाजी में अंतिम संस्कार भी करवा दिया। आखिर ऐसा करने की क्या मजबूरी थी?
  3. डीएनए रिपोर्ट में कई नमूने क्यों मिले? : केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) की रिपोर्ट में पीड़ित के शरीर से कई डीएनए नमूने मिलने की पुष्टि हुई थी। फिर जांच केवल संजय रॉय तक ही सीमित क्यों रही? अन्य डीएनए नमूनों की जांच क्यों नहीं करवाई गई?
  4. सबूत मिटाने की कोशिश क्यों हुई? : घटना के कुछ दिन बाद ही आरजी कर अस्पताल के छाती विभाग से सटे शौचालय को ध्वस्त कर दिया गया। इसके पीछे की वजह क्या थी? क्या कोई महत्वपूर्ण सबूत नष्ट किए गए?
  5. पुलिस और सीबीआई की भूमिका संदिग्ध क्यों दिख रही है? : कोलकाता पुलिस और सीबीआई ने कई जरूरी सबूतों को नज़रअंदाज किया। यहां तक कि पुलिस ने घटना के बाद मोबाइल फोन से महत्वपूर्ण डेटा गायब करने की कोशिश की। इससे न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर संदेह पैदा होता है।

सीबीआई और राज्य सरकार पर मिलीभगत के आरोप : अभया आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र और राज्य की सरकारें संजय रॉय को फांसी की सजा देकर असली अपराधियों को बचाना चाहती हैं। यही कारण है कि सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की, और दो दिन बाद सीबीआई ने भी यही कदम उठाया।

सीबीआई की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए संजय रॉय के वकील ने खुलासा किया कि उनके लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा नियुक्त वरिष्ठ वकील ने अदालत में सीबीआई के तर्कों को ही दोहराया। इससे यह साफ हो जाता है कि सीबीआई और राज्य सरकार दोनों ही संजय रॉय को बलि का बकरा बनाकर असली गुनहगारों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री का यह दावा कि अगर यह मामला उनकी पुलिस के हाथ में होता, तो वे मृत्युदंड सुनिश्चित कर देतीं, न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश की तरह देखा जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि राज्य सरकार जब न्याय दिलाने में इतनी तत्पर थी, तो कई अन्य मामलों में दोषियों को सजा क्यों नहीं दिलवा पाई?

जनता में आक्रोश, अभया आंदोलन ने दी चेतावनी : इस फैसले के बाद जनता में भारी आक्रोश है। कोलकाता और अन्य जिलों में अभया आंदोलन के समर्थकों ने सड़कों पर उतरकर निष्पक्ष जांच की मांग की है। अभया आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने कहा है कि वे संजय रॉय को फांसी की सजा देने के पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि इससे असली अपराधियों को बचने का मौका मिल जाएगा। आंदोलनकारियों का कहना है कि अगर राज्य और केंद्र सरकारें न्याय दिलाने में वाकई गंभीर हैं, तो उन्हें इस मामले की दोबारा स्वतंत्र जांच करवानी चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि डीएनए रिपोर्ट में आए अन्य नमूने किसके थे और वे अपराध में किस हद तक शामिल थे।

स्वास्थ्य और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का पर्दाफाश : इस मामले ने राज्य सरकार के स्वास्थ्य प्रशासन और पुलिस तंत्र की सच्चाई भी उजागर कर दी है। हाल ही में मिदनापुर मेडिकल कॉलेज में नकली सलाइन के कारण नवजात शिशुओं और माताओं की मौत हो गई, लेकिन सरकार ने कार्रवाई करने के बजाय कुछ डॉक्टरों को निलंबित कर मामले को दबाने की कोशिश की। इससे पहले भी, राज्य के कई अस्पतालों में डॉक्टरों ने खराब गुणवत्ता की सलाइन को लेकर शिकायतें की थीं, लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब एक मां और नवजात की मौत हुई, तब जाकर स्वास्थ्य विभाग को इस सलाइन पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। लेकिन, असली दोषियों—दवा माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

संघर्ष जारी रहेगा : अभया आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक असली अपराधियों को सजा नहीं मिलती, वे आंदोलन जारी रखेंगे। इस मामले ने केवल न्यायिक व्यवस्था ही नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक और राजनीतिक सिस्टम की विफलता को उजागर कर दिया है। जनता अब भ्रष्टाचार, महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा, स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था की बदहाली, और पुलिस प्रशासन की नाकामी के खिलाफ एकजुट हो रही है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं, और आंदोलनकारियों का मानना है कि यह केवल एक मामला नहीं है, बल्कि एक बड़े सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की जरूरत को दर्शाता है।

अगला कदम क्या होगा? इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जाएगी, लेकिन जनता की मांग इससे कहीं आगे बढ़ चुकी है। अब केवल संजय रॉय की सजा का सवाल नहीं, बल्कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच और असली अपराधियों को सजा दिलाने का संघर्ष शुरू हो चुका है। अभया आंदोलन के कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर इस लड़ाई को सत्ता परिवर्तन के संघर्ष में नहीं बदला गया, तो न्याय पाना और भी मुश्किल होगा। अब देखना यह है कि राज्य की जनता इस अन्याय के खिलाफ कितना मजबूती से खड़ी रहती है और क्या यह आंदोलन सरकार को झुकाने में सफल होता है या नहीं??…

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